कुंकुम के तिलक पर चावल लगाना जरूरी क्यों?

कुंकुम के तिलक पर चावल लगाना जरूरी क्यों?

हिन्दू धर्म पूजन से जुड़ी अनेक परंपराएँ हैं। उन्हीं में से एक परंपरा है पूजन के समय माथे पर अधिकतर कुंकुम का तिलक लगाने की और उस पर चावल लगाकर चावल पीछे की तरफ फेंकने की। तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाय जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है। मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। मेधा शक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट नहीं होती। साथ ही कुंकुम का तिलक त्वचा रोगों से मुक्ति दिलवाता है। चावल लगाने का कारण यह है कि चावल को शुद्धता का प्रतीक माना गया है और कुछ चावल के दाने सिर के ऊपर फेंकने का कारण यह है कि शास्त्रों के अनुसार चावल को हवन में देवताओं का चढ़ाया जाने वाला और शुद्ध अन्न माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कच्चा चावल सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला है।

इसी कारण पूजन में कुंकुम के तिलक के ऊपर चावल के दाने लगाए जाते हैं साथ ही चावल को पीछे की तरफ इसीलिए फेंका जाता है ताकि हमारे आसपास जो भी नकारात्मक ऊर्जा उपस्थित हो, वह सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाए और हम सकारात्मक विचारों के साथ जीवन जीएं। नकारात्मक सोच हमें छू भी ना पाए। तिलक लगाना सात्विकता का प्रतीक है। कोई भी शुभकार्य करने से पहले तिलक लगाने की परंपरा सदियों से विद्यमान है। तिलक अमूमन हल्दी, कुमकुम, चंदन और रोली से लगाया जाता है। तिलक लगाने के बाद अक्षत यानी चावल लगाने की भी परंपरा है।

तिलक लगाने के बाद चावल लगाने का भी प्रचलन है, अक्षत यानी चावल शांति का प्रतीक है। इसलिए तिलक लगाने के बाद चावल लगाया जाता है। मस्तिष्क के जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है, उसे आज्ञाचक्र कहा जाता है। शरीर शास्त्र के अनुसार यहां पीनियल ग्रंथि होती है। तिलक पीनियल ग्रंथी को उत्तेजित बनाए रखती है। ऐसा होने पर मस्तिष्क के अंदर दिव्य प्रकाश की अनुभूति होती है। शास्त्रों के मतानुसार हिन्दू धर्म के प्रत्येक धार्मिक कर्म-काण्ड में चावल का बहुत महत्व है। देवी-देवता को अर्पण करने के साथ ही इसे जातक के मस्तक पर सज्जित तिलक पर भी लगाया जाता है। पूजा में चावल समर्पित करके इस मंत्र का जाप करें-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥

अर्थात हे देवता! कुंकुम के रंग से सुशोभित यह अक्षत आपको समर्पित कर रहे हैं, कृपया इसे स्वीकार करें। भाव यह कि अन्न में अक्षत यानि चावल को श्रेष्ठ माना गया है। इसे देवान्न भी कहते है अर्थात देवताओं का प्रिय अन्न। अत: इसे सुगंधित द्रव्य कुंकुम के साथ आपको समर्पित कर रहे हैं। इसे ग्रहण कर आप भक्त की भावना को स्वीकार करें। हमारे शरीर में 7 सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है। यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं। इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है। यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी कहा जाता है। इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है। ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मस्तक में तरावट आती है। लोग शांति व सुकून का अनुभव करते हैं। नियमित रूप से तिलक लगाने से सिरदर्द की समस्या में कमी आती है और यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचाता है। तिलक संग चावल लगाने से लक्ष्मी आकर्षित होती हैं।