गंगा दशहरा

गंगा दशहरा

गंगा नदी को देश की सबसे पवित्र नदी में गिना जाता है. कहते है इसमें नहाने से मानव जाति के सारे पाप धुल जाते है. कल-कल कर बहती गंगा का जिस दिन धरती में अवतरण हुआ था, यानि जिस दिन वो धरती में पहुंची थी, उसे आज हम गंगा दशहरा के रूप में मनाते है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ये ज्येष्ठ माह में ज्यादातर आती है. इस दिन देश विदेश से लोग गंगा तट के किनारे स्नान व उसकी पूजा अर्चना के लिए पहुँचते है. गंगा दशहरा में दान व स्नान का बहुत महत्त्व है. कहते है अगर आपके आसपास गंगा जी नहीं है, तो आप कोई भी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें और गंगा जी के जाप का उच्चारण करें. इसके बाद गरीब जरुरत मंद को दान दक्षिणा दें. गंगा दशहरा का महोत्सव पुरे दस दिन तक मनाया जाता है.

गंगा दशहरा कथा
राम जी की नगरी अयोध्या में एक राजा हुआ करते थे, सगर. इनकी 2 रानियाँ थी, जिसमें से एक रानी को 60 हजार पुत्र थे, व दूसरी को सिर्फ एक पुत्र था. राजा ने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए अश्वमेव यज्ञ का आयोजन किया. उन्होंने समूचे भारत में भ्रमण के लिए और सभी राजाओं को बताने के लिए अपने अश्व को छोड़ा. महाराज इंद्र सगर राजा का यह यज्ञ सफल नहीं होने देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अश्व को अगवा कर लिया. सगर राजा के सभी बेटे इस घोड़े की खोज में लग गए, समस्त पृथ्वी में खोज करने के बाद भी अश्व का कुछ पता न चला. जिसके बाद राजा ने पाताललोक में खोज करने का हुक्म दिया. पाताल में खुदाई हुई, उसी समय वहां महामुनि कपिल की समाधी लगी हुई थी, जो घोर तपस्या में लीन थे. उन्ही के समाधी के पास घोडा भी था, जिसे देख राजा के बेटों को ग़लतफहमी हो गई, और वे चिल्लाने लगे, जिससे कपिल महाराज की तपस्या भंग हो गई, और उनकी घोर तपस्या की तपन से राजा के 60 हजार पुत्र वहीँ राख का ढेर हो गए.

दुसरे पुत्र ने अपने पिता को जाकर पूरी बात बताई. यहीं महाराज गरुड़ भी आये, जिन्होंने राजा सगर को अपने 60 हजार पुत्र मुक्ति प्राप्ति के लिए सिर्फ एक ही रास्ता बताया. उन्होंने बोला तुम्हें तपस्या करके गंगा को धरती पर लाना होगा, जैसे ही गंगा धरती में आएँगी, तुम्हारे पुत्रों की भस्मी पर पड़कर वे सब मुक्त हो जायेंगें. सगर और उनके पुत्र ने तपस्या की, लेकिन सफल नहीं हो पाये. इसके पश्चात् सगर राजा का पौत्र भागीरथ का जन्म हुआ. अपने पूर्वज के इस अधूरे काम को उसने अपना कर्तव्य समझा और ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या की. ब्रह्मा जी खुश होकर प्रकट हुए, और वरदान मांगने को बोला. भागीरथ ने गंगा को धरती में भेजने की मांग की. लेकिन यहाँ ब्रह्मा जी ने बताया कि, धरती में इतना बल नहीं है कि वो गंगा के भार को सहन कर सके, अतः तुम्हें शिव से इसमें मदद लेनी चाहिए, वे ही है जो गंगा को धरती पर अपने द्वारा भेज सकते है. उस समय गंगा ब्रह्मा के कमंडल में थी, जिसे उन्होंने शिव की जटाओं में अवतरित किया.

भागीरथ ने अब फिर शिव की कड़ी तपस्या की, वे सालों एक अंगूठे पर खड़े रहे. इस दौरान गंगा कई सालों तक शिव की जटाओं में ही रही, वे इसमें से निकलना चाहती थी, और रसातल जाना चाहती थी. लेकिन इतनी जटिल जटाओं में वे खो ही गई, उन्हें बाहर निकलने का रास्ता ही समझ नहीं आता था. भागीरथ की तपस्या से खुश होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए, और वरदान पूरा करने का आश्वासन दिया. इसी के बाद गंगा जी की सात धाराएँ, हिमालय के बिन्दुसार से होते हुए पृथ्वी पर आई. पृथ्वी में आते ही गंगा का विशाल रूप देख मानव जाती परेशान हो गई, उन्हें लगा भूचाल आ गया. जिस रास्ते से गंगा निकल रही थी, वहां कई ऋषि मुनियों के आश्रम भी थे, जिसमें से एक थे महाराज जहू. गंगा को आता देख वे समझे ये कोई राक्षस की क्रीड़ा है, तथा उन्होंने उसे अपने मुंह के अंदर ले लिया. भागीरथ समेत सभी देवताओं ने उनसे विनती की, तब वे माने. इसी के बाद से उनका नाम जान्हवी पड़ा. इसके बाद भागीरथ ने अपने 60 हजार पूर्वज को मुक्ति दिलाई. यहाँ से गंगा को एक नया नाम भी दिया गया भागीरथी.