राम नवमी

राम नवमी

राम जन्म अवतार इतिहास, कथा 
त्रेता युग में जब धरती पर रावण और तड़का जैसे असुरो का आतंक बढ़ गया तो स्वयं भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के अवतारो का धरती पर आगमन हुआ और इन्होने अपने भक्तो का उद्धार किया. पुरानी कथाओ के अनुसार त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ की 3 पत्नियाँ थी, परंतु फिर भी वे संतान सुख से वंचित थे. महाराज दशरथ ने अपनी एक मात्र पुत्री शांता को गोद दे दिया था, जिसके बाद उन्हें कई वर्षो तक कोई संतान नहीं हुई. इससे व्यथित राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने कमेष्ठि यज्ञ करवाने की आज्ञा दी. इस यज्ञ के फलस्वरूप राजा दशरथ के यहाँ तीनों रानियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उनकी प्रथम पत्नी कौशल्या की कोख से भगवान राम का जन्म हुआ. राजा दशरथ के तीन अन्य पुत्र भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे.

राम के गुरु 
ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ भगवान राम के गुरु थे, जिन्होंने उन्हें वैदिक ज्ञान के साथ- साथ शस्त्र अस्त्र में निपूर्ण किया. ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र ने भी राम को शस्त्र विद्या दी और इन्ही के मार्गदर्शन में राम ने तड़का वध एवम अहिल्या उद्धार किया और सीता स्वयम्वर में हिस्सा लिया और सीता से विवाह किया.

राम वनवास कथा
महाराज दशरथ अपने जेष्ठ पुत्र राम को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी अन्य पत्नी कैकई की मंशा थी, कि उनका पुत्र भरत सिंहासन पर बैठे, इसलिए उन्होंने राजा दशरथ से अपने दो वरदान (यह वे वरदान थे, जिनका वचन राजा दशरथ ने तब दिया था, जब युद्ध के दौरान रानी कैकई ने राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की थी) मांगे, जिसमे उन्होंने भरत का राज्य अभिषेक और राम के लिए वनवास माँगा और इस तरह भगवान राम को चौदह वर्षो का वनवास मिला. इस वनवास में सीता एवम भाई लक्ष्मण ने भी अपने भाई के साथ जाना स्वीकार किया. साथ ही भरत ने भी भातृप्रेम को सर्वोपरि रखा और एक वनवासी की तरह ही चौदह वर्षो तक अयोध्या को एक अमानत के रूप में स्वीकार किया.

वनवास काल 
इस वनवास में भगवान राम ने कई असुरों का संहार किया. शायद कैकई के वचन केवल आधार थे, क्यूंकि नियति कुछ इस प्रकार थी. भगवान राम ने अपने वनवास काल में हनुमान जैसे सेवक, सुग्रीव जैसे मित्र को पाया. नियति ने सीता अपहरण को निम्मित बनाकर रावण का संहार किया. सीता जन्म का उद्देश्य ही रावण संहार था, जिसे श्री राम ने पूरा कर मनुष्य जाति का उद्धार किया.

राम राज्य 
श्री ने वनवास काल पूर्ण किया और भरत ने अपने बड़े भ्राता को अयोध्या का राज पाठ सौंपा. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने एक ऐसे राम राज्य की स्थापना की. जिसे सदैव आदर्श के रूप में देखा गया. राम ने प्रजा हित के सीता का परित्याग किया. अपने कर्तव्यों के लिए उन्होंने स्वहित को द्वीतीय स्थान दिया और इस तरह राम राज्य की स्थापना की.

राम के लव कुश 

सीता ने प्रजाहित के लिए परित्याग स्वीकार किया और अपना जीवन वाल्मीकि आश्रम में बिताया और उस समय सीता ने दो पुत्रो को जन्म दिया, जिनका नाम लव कुश था. यह दोनों ही पिता के समान तेजस्वी थे. इन्ही के हाथो राम ने अपने राज्य को सौंपा और स्वयं ने अपने विष्णु अवतार को धारण कर अपने मानव जीवन को छोड़ा.