शीतला अष्टमी व्रत

शीतला अष्टमी व्रत

हिंदू पंचांग के अनुसार, रंगो वाली होली के पर्व के 8 दिन बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर माता शीतला की पूजा होती है, जिसे बसोडा पूजा या शीतला अष्टमी भी कहा जाता है। ज्यादातर यह तिथि होली के 8 दिन बाद पड़ती है लेकिन कई लोग शीतला अष्टमी होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को भी मना लेते हैं।

मान्यताओं के अनुसार, इस अष्टमी पर माता शीतला की पूजा करने से चेचक, चिकन पॉक्स और खसरा जैसी बीमारियां ठीक होती हैं और काया निरोगी रहती है। आरोग्य भरा जीवन प्राप्त करने के लिए लोग इस दिन माता शीतला की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान कथा पढ़ने का भी विधान है। आइए जानते हैं क्या है शीतला माता के अनुष्ठान से जुड़ी कथा।

शीतला माता की पौराणिक कथा (Sheetla Mata Prachin Katha)

एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे। दंपति के दो बेटे और दो बहुएं थीं। बहुओं को लंबे समय के बाद बेटे हुए। इतने में शीतला अष्टमी का पर्व आया। घर में पर्व के अनुसार ठंडा भोजन तैयार किया गया। दोनों बहुओं के मन में विचार आया कि यदि हम ठंडा बासी भोजन लेंगी तो बीमार होंगी, बेटे भी अभी छोटे हैं। इस विचार के कारण दोनों बहुओं ने चोरी छिपे पशुओं के दाने तैयार करने के बर्तन में गुप-चुप दो बाटी तैयार कर लीं। सास-बहू शीतला की पूजा करके आई और शीतला माता की कथा सुनी।

बाद में सास शीतला माता के भजन करने बैठ गई लेकिन दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर आ गईं। दाने के बरतन से गरम-गरम रोटला निकाला, चूरमा किया और पेटभर कर खाना खाया। सास ने घर आने पर बहुओं से भोजन करने के लिए कहा। बहुएं ठंडा बासी भोजन करने का दिखावा करके घर के काम में लग गई। सास ने कहा, 'बच्चे कब के सोए हुए हैं, उन्हे जगाकर भोजन करा लो..।'

बहुएं जैसे ही अपने बेंटों को जगाने गईं तो उन्हें मृतप्रायः पाया। ऐसा बहुओं की करतूतों के फलस्वरुप शीतला माता के प्रकोप के कारण हुआ था। बहुएं विवश हो गईं और सास ने घटना जानने के बाद बहुओं को खूब डांटा। सास बोली कि तुम दोनों ने शीतला माता की अवहेलना की है इसलिए घर से निकल जाओ और बेटों को जिन्दा-स्वस्थ लेकर ही घर में पुन: पैर रखना।

अपने मृत बेटों को टोकरे में सुलाकर दोनों बहुएं घर से निकलीं। जाते-जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया। यह खेजडी का वृक्ष था। इसके नीचे ओरी शीतला दोनों बहनें बैठी थीं। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं भी थीं। बहुओं को थकान हो गई थी और इसलिए दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई। उन दोनों ने शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली। जूंओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया और कहा, 'तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल किया है, वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले।'

दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटक रही हैं, परंतु शीतला माता के दर्शन हुए ही नहीं। शीतला माता ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो, दुष्ट हो, दुराचारिनी हो, तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है। शीतला अष्टमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था।

यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माताजी को पहचान लिया। देवरानी-जेठानी ने दोनों ने माताओं का वंदन किया। गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं और अनजाने में हमने ताजा गरम खाना खा लिया था। आपके प्रभाव को हम जानती नहीं थीं। आप हम दोनों को क्षमा करें। हम पुनः ऐसा दुष्कृत्य कभी नहीं करेंगे।

उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर माताएं प्रसन्न हुईं। शीतला माता ने मृतक बालकों को जीवित कर दिया। बहुएं तब बच्चों के साथ लेकर आनंद से पुनः गांव लौट आईं। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए। दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव में प्रवेश करवाया गया। बहुओं ने कहा,'हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगी।'

चैत्र मास में शीतला अष्टमी के दिन मात्र ठंडा खाना ही खाएंगी। शीतला माता ने बहुओं पर जैसी अपनी दृष्टि की वैसी कृपा सब पर हो। श्री शीतला मां सदा हमें शांति, शीतलता तथा आरोग्य प्रदान करें।

शीतले त्वं जगन्माता
शीतले त्वं जगत् पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री
शीतलायै नमो नमः।।

बोलो श्री शीतला माता की- जय।