सिद्धवट – यहां हुआ था कार्तिकेय स्वामी का मुंडन

सिद्धवट – यहां हुआ था कार्तिकेय स्वामी का मुंडन
शास्त्रों के श्राद्ध पक्ष में सभी मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पुण्य कर्म करने की परंपरा है। स्कंद पुराण के अनुसार उज्जैन के सिद्धवट घाट पर मृत परिजनों की आत्म शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करने पर आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और घर-परिवार के सभी दुखों का नाश हो जाता है। सिद्धवट, बरगद का वृक्ष है, शिवजी का रूप मानकर इसकी पूजा की जाती है। इसकी पूजा से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं, इसीलिए इसे सिद्धवट कहा जाता है। इस वृक्ष की स्थापना माता पार्वती ने की थी।
यहां हुआ था कार्तिकेय स्वामी का मुंडन
स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में ये उल्लेख है कि हजारों साल पहले उज्जैन के सिद्धवट क्षेत्र भगवान कार्तिकेय का मुंडन संस्कार हुआ था। अविंतका यानी उज्जैन का इतिहास हजारों साल पुराना है। यहां विराजित ज्योतिर्लिंग महाकाल को भस्म चढ़ाई जाती है। ये दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है, जहां भस्म आरती की जाती है।
माता पार्वती ने की थी यहां तपस्या
माता सती ने आत्म दहन के बाद शिवजी वैरागी हो गए थे और उन्होंने पूरे शरीर पर भस्म रमा ली थी, उसी स्वरूप की पूजा महाकालेश्वर के रूप में की जाती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उज्जैन के सिद्धवट क्षेत्र में माता पार्वती ने शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी।
मुगल बादशाह ने कटवा दिया था सिद्धवट
यहां प्रचलित कथाओं के अनुसार मुगल काल में बादशाहों ने इस क्षेत्र के धार्मिक महत्व को खत्म करने के लिए बरगद के इस वृक्ष नष्ट करने के लिए उस पर लोहे के बहुत मोटे-मोटे तवे जड़वा दिए थे। इसके बाद भी इस वृक्ष के फिर से अंकुर फूट निकले और आज भी ये वृक्ष हरा-भरा है।
कार्तिकेय स्वामी को यहां मिली थी शक्ति
ब्रह्माजी ने तारकासुर को ये वरदान दिया था कि उसकी मृत्यु शिव के पुत्र द्वारा ही हो सकेगी। उस समय शिवजी वैरागी हो गए थे। इस वजह से तारकासुर ने सोचा था कि शिवजी विवाह नहीं करेंगे तो उनका पुत्र नहीं होगा और वह अमर हो जाएगा। इसके बाद भगवान विष्णु और सभी देवताओं के आग्रह पर शिवजी ने माता पार्वती से विवाह किया था। शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय स्वामी को देवताओं का सेनापति बनाया गया और सिद्धवट क्षेत्र में उन्हें वह शक्ति प्रदान की गई, जिससे उन्होंने तारकासुर का वध कर दिया।
एक मान्यता के अनुसार इस वृक्ष के नीचे बैठकर सम्राट विक्रमादित्य ने तप किया था और बेताल को वश में करने की सिद्धि प्राप्त की थी।
सुख-समृद्धि की मनोकामना के लिए इस वृक्ष पर रक्षा सूत्र बांधा जाता है। पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए यहां उल्टा सातिया (स्वास्विक) बनाया जाता है।
उज्जैन के पास भैरवगढ़ क्षेत्र में शिप्रा के तट पर सिद्धवट स्थित है। शास्त्रों के अनुसार प्रयाग में अक्षयवट है, नासिक में पंचवट है, वृंदावन में वंशीवट है, गया में गयावट है, उसी प्रकार उज्जैन में पवित्र सिद्धवट हैं।
यहां कर्मकाण्ड, मोक्ष कर्म, पिण्डदान, कालसर्प दोष की शांति पूजा, नागबलि, नारायण बलि-विधान आदि पूजा कर्म होते रहते हैं।