हर छठ / हल छठ

हर छठ / हल छठ

भारत भर में हर छठ (हल षष्ठी) व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्री कृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलराम जी का जन्म हुआ था।

श्री बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम 'हल षष्ठी या हर छठ' पड़ा। भारत के कुछ पूर्वी हिस्सों में इसे 'ललई छठ' भी कहा जाता है।

हर छठ/ हल छठ की पूजा का हिन्दू पर्व में बहुत अधिक महत्व हैं। आमतौर पर यह उत्तर भारत में मनाया जाता हैं। यह व्रत पुत्रवती स्त्रियाँ अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए करती हैं। यह हर छठ का व्रत बहुत नियम कायदों के साथ किया जाता हैं।

व्रत कथा :
एक ग्वालिन थी वो दूध दही बेचकर अपना जीवन व्यापन करती थी। वह गर्भवती थी।एक दिन जब वह दूध बेचने जा रही थी उसे प्रसव का दर्द शुरू हुआ। वो समीप पर एक पेड़ के नीचे बैठ गई जहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया। ग्वालिन को दूध ख़राब होने की चिंता थी इसलिये अपने पुत्र को पेड़ के नीचे सुलाकर वो गाँव में दूध बेचने चली गई। उस दिन हर छठ व्रत था सभी को भेंस का दूध चाहिए था। ग्वालिन के पास केवल गाय का दूध था उसने झूठ बोलकर सभी को भेस का दूध बताकर पूरा गाय का दूध बेच दिया। इससे हर छठ माता क्रोधित हो गई। और उसके पुत्र के प्राण हर लिये। जब ग्वालिन आई उसे अपनी करनी पर बहुत संताप हुआ और उसने गाँव में जाकर सभी के सामने अपने गुनाह को स्वीकार किया। सभी से पैर पकड़कर क्षमा मांगी। उसके इस तरह से विलाप को देख कर उसे सभी ने माफ़ कर दिया। जिससे हर छठ माता प्रसन्न हो गई। और उसका पुत्र जीवित हो गया।

तब ही से पुत्र की लंबी उम्र हेतु हर छठ माता का व्रत एवम पूजा की जाती हैं। कहा जाता हैं जब बच्चा पैदा होता हैं तब से लेकर छः माह तक छठी माता बच्चे की देखभाल करती हैं। उसे हँसती हैं। उसका पूरा ध्यान रखती हैं इसलिये बच्चे के जन्म के छः दिन बाद छठी की पूजा भी की जाती हैं।हर छठ माता को बच्चो की रक्षा करने वाली माता भी कहा जाता हैं।