29 जुलाई 2023, अधिकमास श्रावण शुक्ल 11
पद्मिनी एकादशी

अधिकमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी या कमला एकादशी कहते हैं। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिकमास में 2 एकादशियां होती हैं, जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती हैं। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। इस एकादशी के व्रत का विधान विष्णु जी ने सर्वप्रथम नारदजी से कहा था। यह विधान अनेक पापों को नष्ट करने वाला तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाला है।



कमला (पद्मिनी) एकादशी व्रत विधि -
  • दशमी वाले दिन व्रत को प्रारंभ करना चाहिए।
  • इस दिन कांसे के पात्र का किसी भी रूप में प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा मांस, मसूर, चना, कोदों, शहद, शाक और पराया अन्न इन सब खाद्यों का त्याग कर देना चाहिए।
  • इस दिन हविष्य भोजन करना चाहिए और नमक नहीं खाना चाहिए।
  • दशमी की रात्रि को भूमि पर शयन करना चाहिए और ब्रह्मचर्यपूर्वक रहना चाहिए।
  • एकादशी के दिन प्रातः नित्य क्रिया से निवृत्त होकर दातुन करनी चाहिए और बारह बार कुल्ला करके पुण्य क्षेत्र में जाकर स्नान करना चाहिए।
  • उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश, आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए।
  • स्नान करने से पहले शरीर पर मिट्टी लगाते हुए उसी से प्रार्थना करनी चाहिए- ‘हे मृत्तिके! मैं तुमको प्रणाम करता हूं। तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो। सभी ओषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करने वाली, तुम मुझे शुद्ध करो। ब्रह्मा के थूक से पैदा होने वाली! तुम मेरे शरीर को स्पर्श कर मुझे पवित्र करो। हे शंख-चक्र गदाधारी देवों के देव! पुंडरीकाक्ष! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिए।’
  • इसके बाद वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए।
  • स्नान करने के उपरांत स्वच्छ और सुंदर वस्त्र धारण करके तथा संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर प्रभु का पूजन करना चाहिए।
  • स्वर्ण की राधा सहित कृष्ण भगवान की मूर्ति और पार्वती सहित महादेवजी की मूर्ति बनाकर पूजन करें।
  • धान्य के ऊपर मिट्टी या तांबे का कुंभ रखना चाहिए। इस कुंभ को वस्त्र तथा गंध आदि से अलंकृत करके, उसके मुंह पर तांबे, चांदी या सोने का पात्र रखना चाहिए। इस पात्र पर भगवान श्रीहरि की मूर्ति रखकर धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, केसर आदि से उनका पूजन करना चाहिए।
  • इसके बाद भगवान के सम्मुख नृत्य व गायन आदि करना चाहिए।
  • उस दिन पतित तथा रजस्वला स्त्री को स्पर्श नहीं करना चाहिए। भक्तजनों के साथ प्रभु के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिए।
  • अधिक (लौंद) मास की शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी का व्रत निर्जल रहकर करना चाहिए।
  • यदि मनुष्य में निराहार रहने की शक्ति न हो तो उसे जलपान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए।
  • रात्रि में जागरण करके नृत्य तथा गायन करके प्रभु का स्मरण करते रहना चाहिए। प्रति पहर मनुष्य को भगवान श्रीहरि या शंकरजी का पूजन करना चाहिए।
  • पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे पहर में बिल्वफल, व तीसरे पहर में सीताफल और चौथे पहर में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए।
  • इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेध यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।
  • इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है। एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को सभी तीर्थों और यज्ञों का फल प्राप्त हो जाता है।
इस प्रकार से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। सभी पदार्थ भगवान की मूर्ति सहित ब्राह्मणों को देने चाहिए। इस तरह जो मनुष्य विधानपूर्वक प्रभु का पूजन तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल हो जाता है और वे इहलोक में अनेक सुखों को भोगकर अंत में विष्णुलोक को जाते हैं ।