कामाख्या देवी की अदभुत विशेषताओं के कारण प्रसिद्ध है यह मंदिर, जानें ये खास बातें |
कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है. इस मंदिर में दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र नहीं है. मंदिर में एक कुंड बना है, जो हमेशा फूलों से ढ़का रहता है. इस कुंड से हमेशा पानी निकलता है. चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनि भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं. इसके अलावा भी मंदिर की कई रोचक बातें हैं, जिनके बारे में हम आपको बता रहे हैं. ![]() मंदिर का नाम कामाख्या क्यों पड़ा ? मंदिर धर्म पुराणों के इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इसी जगह पर भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर ये भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी. आज यह बहुत ही शक्तिशाली पीठ है. यहां सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है. इन दिनों मंदिर में लाखों की संख्या में लोगों की भीड़ जुटती है. यहां का अम्बुवाची मेला है प्रसिध्द हर साल यहां अम्बुवाची मेले के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है. ऐसी मान्यता है कि पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है. फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है. मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबो-गरीब प्रसाद दिया जाता है. दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है. कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है. तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है. इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं. इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है.
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