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20 जुलाई 2020 , श्रावण कृष्ण अमावस्या
हरियाली अमावस्या
हरियाली अमावस्या
हरियाली अमावस्या जैसा की नाम से समझ आता है, हरियाली मतलब हरा भरा वातावरण और अमावस्या जिस दिन चाँद नहीं निकलता है. हरियाली तीज एवं हरियाली अमावस्या तीन दिन आगे पीछे आती है. तीज की तरह अमावस्या का भी बहुत महत्त्व है. हरियाली अमावस्या का मुख्य उद्देश्य प्रकृति की सुन्दरता और उसके रूप को मनुष्य से जोड़ना है. प्रकृति की हरियाली का महत्व लोगों को समझाने के लिए हरियाली अमावस्या बड़ी धूमधाम से मनाते है. ऐसे त्यौहार से मनुष्य प्रकृति के और करीब आ पाता है, और उसके महत्त्व हो समझ पाता है. हरियाली अमावस्या का एक और महत्व यह है कि यह लोगों को प्रकृति की महत्ता के बारे में बताता है. इस दिन लोगों से वृक्षारोपण करने का आग्रह किया जाता है, इससे उन्हें सुख सम्रधि भी मिलती है. पुराणों के अनुसार एक पेड़ लगाने से दस पुत्रों के जितना सुख मिलता है. वैसे अमावस्या को पितरों का दिन मानते है. हिन्दू लोग अपने पूर्वज, पितरों को इस दिन याद करते है,
आदि अमावस्या –
दक्षिण के तमिलनाडु में तमिल लोग अपने कैलेंडर के अनुसार आदि के महीने में आदि अमावसी मनाते है. इस दिन वे विशेष रूप से श्राद्ध व तर्पण करते है. इस दिन तमिल लोग विशेषकर अपने भगवान् मुरुगन की पूजा अर्चना करते है. इस दिन पवित्र नदी में स्नान किया जाता है, तीर्थधाम में पिंड दान होता है. रामेश्वरम के अग्नि तीर्थं में इस दिन हजारों लोग डूपकी लगाते है, और पूर्वजों को याद करते है. इसके अलावा कावेरी नदी और घाट में भी भीड़ रहती है, साथ ही कन्याकुमारी के त्रिवेणी संगम में विशेष आयोजन होता है. आदि अमावसी के दिन लोग उपवास करते है, और एक समय खाना खाते है. तमिल लोगों के लिए आदि महिना बहुत महत्वपूर्ण होता है, इसलिए आदि अमावस्या में विशेष पूजा, हवन का आयोजन होता है. भगवान मुरूग के विश्वासी अपने पापों को धोने के लिए पलानी के शंमुगा नदी में डूपकी लगाते है. यहाँ कुछ लोग अपने बालों का दान भी करते है.
हरियाली अमावस्या मनाने का तरीका –

हरियाली अमावस्या के दिन मुख्य रूप से भगवान् शिव की पूजा अर्चना की जाती है. अच्छी वर्षा, मानसून के लिए प्रार्थना करते है, जिससे खेती में कोई परेशानी न आये. सभी शिव मंदिरों में विशेष व्यवस्था की जाती है, शिव दर्शन के लिए भक्तों का ताँता लगा रहता है. वृन्दावन एवं मथुरा में तो इस दिन बहुत धूम रहती है. मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में हजारों कृष्ण भक्त दूर दूर से पहुँचते है, और प्रार्थना करते है. वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में भी भक्तिमय माहौल होता है, इस दिन यहाँ विश्व प्रसिद्ध फूल बंगला महोत्व की समाप्ति भी होती है.
हरियाली अमावस्या में पीपल के पेड़ की विशेष पूजा की जाती है. भक्त पीपल के पेड़ की पूजा कर उसके चक्कर लगते है और मालपुए का भोग चढाते है. कहते है पीपल के पेड़ में देवी देवता रहते है, इसलिए इस दिन उन्हें दूध, दही, विशेष प्रसाद बनाकर चढ़ाया जाता है. हरियाली अमावास के दिन कुछ लोग व्रत भी रखते है, पंडित को खिलाने के बाद वे एक समय ही भोजन ग्रहण करते है. जीवन में शांति के लिए लोग इस दिन शनि भगवान की पूजा करते है, और उन्हें तेल चढ़ाकर, दिया लगाते है. इस दिन केला के पेड़ की भी पूजा की जाती है, साथ ही कहते है, इस दिन एक केला का पेड़ जरुर लगाना चाहिए. चना-गुड़ दान में दिया जाता है. हरियाली अमावस्या को कोई भी एक पोधा का रोपण जरुर करना चाहिए.
राजस्थान में हरियाली अमावस्या का महत्व एवं मनाने का तरीका –
राजस्थान में हरियाली अमावस्या बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है. जयपुर, उदयपुर में तो विशेष तैयारियां की जाती है. इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य वातावरण को हराभरा रखना है. बड़े तौर पर इसे मनाने से अधिक लोग इसके महत्व हो समझ पाते है. उदयपुर में इस दिन को बड़े रूप से मनाने की शुरुवात महाराज फ़तेह सिंह ने की थी. महाराजा जी ने एक बार देखा की उनके राज्य में पानी की बहुत बर्बादी होती है, इसे रोकने के लिए उन्होंने एक जलाशय का निर्माण करवाया. इस जलाशय को फ़तेह सागर जलाशय कहा गया. जलाशय का निर्माण सावन महीने की अमावस्या के दिन पूरा हुआ, जिसकी सफलता के बाद यहाँ एक बड़े महोत्सव का आयोजन किया गया. इस फेयर/मेला की प्रथा आज भी चली आ रही है.
फेयर सहेलीयों की बारी से फ़तेहसागर तक का होता है. ये फेयर अब तीन दिन का होता है, जिसमें तरह तरह के खेल, कुश्ती प्रतियोगिता, फोल्क डांस होते है. साथ ही कपड़े, ज्वेलरी, खाने के स्टाल भी लगाये जाते है. यह फेयर बहुत फेमस होता है. देश विदेश से बहुत से पर्यटक इसे देखने उदयपुर जाते है. विदेशी पर्यटकों को भी यहाँ मौज मस्ती करते देखा जाता है, इस तरह के आयोजन हमारी भारतीय सभ्यता, संस्कृति को दर्शाते है. फेयर के आखिरी दिन यहाँ सिर्फ औरतों को ही जाने की इजाजत होती है, सभी औरतें खुलकर मौज मस्ती करती है, और अपने परिवार के सुख के लिए प्रार्थना भी करती है. इसके अलावा इस फेयर में वृक्षारोपण का भी कार्यक्रम रखा जाता है.