06 जुलाई 2020, श्रावण कृष्ण 1 राजाधिराज महाकालेश्वर की सवारी |
महाकालेश्वर की सवारी का यह है इतिहास |
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उज्जैन एक तीर्थ नगरी है। यहां पर्व, तीज, त्योहार, व्रत सभी आयोजन बड़ी आस्था, परंपरा और विधिपूर्वक मनाए जाते हैं। श्रावण मास में तीज-त्योहार की बहार आ जाती है। श्रावण सोमवार सवारी, नागपंचमी, रक्षाबंधन के अवसरों पर इस धार्मिक नगरी में गांव-गांव से आस्था का सैलाब उमड़ता है। इस नगरी में सभी धर्म-संप्रदाय के लोग सामाजिक समरसता और सौहार्द्र के साथ रहते हैं। श्रावण मास के पहले सोमवार, शिव भक्तों की अपार भीड़ और सुबह से ही दर्शनों के लिए उमड़ रहे भक्तों के जनसैलाब, बाबा के जयकारे लगाते हुए बाबा की सवारी निकालने को तैयार हो रहा है। राजाधिराज भगवान महाकाल चांदी की पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते है । इस दौरान हजारों भक्त बाबा की एक झलक पाने के लिए आतुर रहते हैं। बैंड, घोड़े, हाथी और भजन कीर्तन मंडलियां अपने आराध्य देव के साथ सवारी में शामिल होती हैं। श्रावण के प्रथम सोमवार को निकलने वाली सवारी में राजाधिराज महाकाल अपने भक्तों को चंद्रमौलेश्वर स्वरूप में दर्शन देते हैं । सोमवार शाम सभा मंडप में पालकी में चंद्रमौलेश्वर का विधिवत पूजन किया जाएगा। इसके बाद पालकी नगर भ्रमण के लिए मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचेगी। यहां पुलिस बल बाबा महाकाल को गॉड ऑफ ऑनर देगा। यहां से राजाधिराज भगवान महाकालेश्वर शाही अंदाज में प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलेंगे। प्रमुख मार्गों से होते हुए राजाधिराज रामघाट स्थित शिप्रा नदी के तट पर पहुंचेंगे। यहां भगवान का मां शिप्रा के जल से अभिषेक पूजन किया जाएगा। इसके बाद सवारी पुन: प्रमुख मार्गों से होते हुए मंदिर की ओर प्रस्थान करेगी। सवारी में भगवान शिव के मुखारविंदों की अलग-अलग रजत प्रतिमाओं की सुंदर झांकियां और चांदी की पालकी में सवार होकर स्वयं बाबा महाकाल नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। अनेक भक्त भूत-पिशाच, देवी-देवताओं का रूप बनाकर शामिल होते हैं। भजन मंडलियां रास्तेभर भोले का गुणगान करती हैं। सवारी महाकाल मंदिर से शाम 4 बजे आरंभ होकर शिप्रा तट रामघाट पहुंचती है, जहां पावन जल से उनका जलाभिषेक कर आरती उतारी जाती है। यह नजारा देखने लायक होता है। इसके बाद सवारी आगे के लिए प्रस्थान करती है। 12 ज्योतिर्लिंग में भगवान महाकालेश्वर का महत्व तिल भर ज्यादा है। वे इस नगरी के राजाधिराज महाराज माने गए हैं। यहां की शाही सवारी पूरी दुनिया में सुप्रसिद्ध है। हर साल महाकाल अपनी नगरी के भ्रमण पर निकलते हैं और उनका हाल जानते हैं. भगवान महाकालेश्वर को उज्जैन नगरी का राजाधिराज महाराज माना जाता है. महाकाल की शाही सवारी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. मान्यता है कि भगवान महाकाल की शरण में आए बिना इस नगरी का पत्ता भी नहीं हिल सकता. शाही सवारी की यह यशस्वी परंपरा का इतिहास क्या है और कब से है ये जानना भी काफी दिलचस्प है. यहां के जानकारों बताते हैं कि सावन महीने के आरंभ में महाकाल की सवारी नहीं निकलती थी, सिर्फ सिंधिया वंशजों के सौजन्य से महाराष्ट्रीयन पंचाग के अनुसार दो या तीन सवारी ही निकलती थीं. एक बार उज्जयिनी के प्रकांड ज्योतिषाचार्य पद्मभूषण स्व. पं. सूर्यनारायण व्यास के निवास पर कुछ विद्वजन के साथ कलेक्टर भी बैठे थे. आपसी विमर्श में परस्पर सहमति से तय हुआ कि क्यों न इस बार सावन के आरंभ से ही सवारी निकाली जाए. सवारी निकाली गई और उस समय उस प्रथम सवारी का पूजन सम्मान करने वालों में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह, राजमाता सिेंधिया व शहर के गणमान्य नागरिक मौजूद रहे. सभी पैदल सवारी में शामिल हुए और इस तरह एक खूबसूरत परंपरा का आगाज हुआ. राजाधिराज महाकालेश्वर की ये सवारी श्रावण मास के पहले सोमवार से प्रारंभ होकर भादवा मास के दुसरे सोमवार तक निकलती है, इस प्रकार ये कुल 6 (श्रावण मास में 4 सोमवार हो तो) या 7 ( श्रावण मास में 5 सोमवार होने पर) सवारी निकलती है, जिसमे भादवा के दूसरे सोमवार की अर्थात आखरी सवारी, शाही सवारी कहलाती है. सिंधिया परिवार की ओर से शुरू की गई ये परंपरा आज भी जारी है. पहले महाराज स्वयं शामिल होते थे. बाद में राजमाता नियमित इस यात्रा में शामिल होती रहीं और आज भी उनका कोई ना कोई प्रतिनिधित्व सम्मिलित रहता है. महाकालेश्वर मंदिर में एक अखंड दीप भी आज भी उन्हीं के सौजन्य से प्रज्ज्वलित है. सावन महीने में महाकाल की नगरी उज्जैन में भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है. उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी के रूप में भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है. प्राचीन काल में इस शहर को अवन्तिका के नाम से जाना जाता था. इसका उल्लेख प्राचीन धर्मग्रन्थों में भी मिलता है. मान्यता है कि आज भी उज्जैन शहर में भगवान शिव राजाधिराज महाकाल महाराज के रूप में साक्षात निवास करते हैं. सावन, महाकाल और उज्जैन इन तीनों की पवित्र त्रिवेणी से भक्तों का जीवन सफल हो जाता है. सावन में शिवभक्ति और शिवभक्तों का उत्साह देखते ही बनता है. |