23 अगस्त 2020 , भाद्रपद शुक्ल 5 ऋषि पंचमी |
ऋषि पंचमी - |
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ऋषि पंचमी का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत अधिक माना जाता हैं. दोषों से मुक्त होने के लिए इस व्रत का पालन किया जाता हैं. यह एक त्यौहार नहीं अपितु एक व्रत हैं जिसमे सप्त ऋषि की पूजा की जाती हैं. हिन्दू धर्म में माहवारी के समय बहुत से नियम कायदों को माना जाता हैं. अगर गलती वश इस समय में कोई चूक हो जाती हैं, तो महिलाओं को दोष मुक्त करने के लिए इस व्रत का पालन किया जाता हैं.
ऋषि पंचमी व्रत पूजा महत्व - हिन्दू धर्म में पवित्रता का बहुत अधिक महत्व होता हैं. महिलाओं के मासिक के समय वे सबसे अधिक अपवित्र मानी जाती हैं. ऐसे में उन्हें कई नियमो का पालन करने कहा जाता हैं लेकिन इसके बावजूद उनसे जाने अनजाने में चुक हो जाती हैं जिस कारण महिलायें सप्त ऋषि की पूजा कर अपने दोषों का निवारण करती हैं . ऋषि पंचमी व्रत कथा - इस व्रत के सन्दर्भ में ब्रह्मा जी ने इस व्रत को पापो से दूर करने वाला व्रत कहा हैं, इसको करने से महिलायें दोष मुक्त होती हैं एक राज्य में ब्राह्मण पति पत्नी रहते थे, वे धर्म पालन में अग्रणी थे. उनकी दो संताने थी एक पुत्र एवं दूसरी पुत्री. दोनों ब्राहमण दम्पति ने अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे कुल में किया लेकिन कुछ वक्त बाद ही दामाद की मृत्यु हो गई. वैधव्य व्रत का पालन करने हेतु बेटी नदी किनारे एक कुटियाँ में वास करने लगी. कुछ समय बाद बेटी के शरीर में कीड़े पड़ने लगे. उसकी ऐसी दशा देख ब्राह्मणी ने ब्राहमण से इसका कारण पूछा. ब्राहमण ने ध्यान लगा कर अपनी बेटी के पूर्व जन्म को देखा जिसमे उसकी बेटी ने माहवारी के समय बर्तनों का स्पर्श किया और वर्तमान जन्म में भी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया इसलिए उसके जीवन में सौभाग्य नहीं हैं. कारण जानने के बाद ब्राह्मण की पुत्री ने विधि विधान के साथ व्रत किया. उसके प्रताप से उसे अगले जन्म में पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति हुई. ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि - कहा जाता हैं महाभारत काल में उत्तरा के गर्म पर अश्व्थामा के प्रहार से उसका गर्भ नष्ट हो गया था. इस कारण उत्तरा द्वारा इस व्रत को किया गया. जिसके बाद उनका गर्भ पुनः जीवित हुआ और हस्तिनापुर को राजा परीक्षित के रूप में उत्तराधिकारी मिला. राजा परीक्षित अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे. पुन: जन्म मिलने के कारण इन्हें गर्भ में ही द्विज कहा गया था. इस तरह इस व्रत के पालन से उत्तरा गर्भपात के दोष से मुक्त होती हैं. इस प्रकार दोषों की मुक्ति के साथ- साथ संतान प्राप्ति एवम सुख सुविधाओं की प्राप्ति, सौभाग्य के लिए भी इस व्रत का पालन किया जाता हैं. इस व्रत का महत्व जानने के बाद सभी स्त्रियों को इस व्रत का पालन करना चाहिये. यह व्रत जीवन की दुर्गति को समाप्त कर पाप मुक्त जीवन देता हैं.आपको यह कैसा लगा अवश्य लिखे. |