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भगवान की पूजा करने के लिए
ब्रह्म मुहूर्त क्यों माना जाता है श्रेष्ठ

ब्रह्म मुहूर्त में पूजा करना सबसे उपयुक्त रहता है। पूजा पाठ सही तरह और सही समय पर की जाएं तो उचित फल मिलता है और घर में सकारात्मकता बढ़ती है। ऋषि मुनियों ने ब्रह्म मुहूर्त को देवताओं का समय कहा है। हमें प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में जागना चाहिए। इस समय जागने और पूजा पाठ करने से मन को शांति प्राप्त होती है।



ब्रह्म का अर्थ होता है परम तत्व या परमात्मा इसलिए हमें सूर्योदय होने से पहले जागना चाहिए और पूजा पाठ करना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त रात्रि का आखिरी प्रहर होता है। सुबह चार बजे से साढ़े पांच बजे तक ब्रह्म मुहूर्त का रहता है। सुबह उठने से हमारा स्वास्थ भी ठीक रहता है क्योंकि सुबह के समय शरीर पर सूर्य की पहली किरणें हमारे लिए बहुत लाभदायक होती हैं। इससे हमारी त्वचा कांतिमय हो जाती है।
सुबह के समय हमारा मन भी एकाग्र रहता है इस कारण पूजा करते समय हमारा मन ईश्वर के साथ पूर्ण रूप से जुड़ जाता है। और पूजा करते समय मन इधर-उधर भटकता नहीं है। पूजा करते समय पूरा ध्यान पूजा पर ही होना आवश्यक होता है अगर पूजा करते समय हमारा ध्यान भटकता है तो हमें पूजा का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है।
दोपहर के समय पूजा को वर्जित माना गया है क्योंकि यह समय पितरों की पूजा करने के लिए शुभ माना गया है। दोपहर के समय ईश्वर की पूजा करने से उसका शुभ फल नहीं मिलता है और दिन के समय हमारे मन में कई तरह के विचार चलते हैं जिससे हम अपना पूरा ध्यान पूजा में नहीं लगा पाते हैं। इसलिए सुबह का समय ही पूजा-पाठ के लिए सर्वोत्तम रहता है।