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आरती का महत्व

पूजा के अंत में आरती की जाती है। ऐसा माना जाता है कि पूजा में कोई कमी रह जाए तो आरती से वह कमी पूरी हो जाती है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि आरती करने से ही नहीं, आरती देखने भर से बहुत पुण्य मिलता है। हिंदू धर्म में पूरी श्रद्धा भक्ति से अपने इष्टदेव की आरती का विशेष महत्व बताया गया है। प्राचीन परंपरा के अनुसार आरती राग में गाई जाती है।



हिंदू धर्म में पूरी श्रद्धा भक्ति से अपने इष्टदेव की आरती का विशेष महत्व बताया गया है। प्राचीन परंपरा के अनुसार आरती राग में गाई जाती है। इसके पीछे धार्मिक कारण तो हैं ही, साथ ही इसका वैज्ञानिक कारण भी है। धार्मिक कारण तो यह है कि संगीतमय आरती भक्तों को प्रसन्न कर देती है। संगीत हर स्थिति में मन को सुकून देने वाला होता है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में कई प्रसंग ऐसे आते हैं जिनमें भगवान की प्रार्थना में विभिन्न वाद्ययंत्रों के साथ-साथ उनकी स्तुति को सही सुर में गाया जाता है। ऐसे स्तुति गान से देवी-देवता शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

प्रतिदिन प्रात:काल सुर-ताल के साथ आरती करना हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। सही सुर में गायन करने से हमारे शरीर का पूरा सिस्टम सक्रिय होता है। हमें ऊर्जा मिलती है और रक्त संचार संतुलित हो जाता है। नियमित आरती करने वाले लोगों की आवाज में अलग ही आकर्षण पैदा हो जाता है। इससे गले से संबंधित कुछ रोगों को दूर करने में मदद मिलती है। इसके अलावा व्यक्ति खुश रहने लगता है। मंदिर में समूह में आरती होने से मनुष्य अपने को कभी अकेला महसूस नहीं करता। इस तरह कई लाभों को देखने के कारण ही आरतियों को राग में गाने की परंपरा शुरू हुई।

कई मंदिरों में आरती, शंख, ध्वनि, घंटे-घडिय़ाल के साथ होती। घंटा नाद से कई शारीरिक कष्ट दूर होते हैं और नई मानसिक ऊर्जा मिलती है। घंटा नाद के कंपन मानसिक तंद्रा को दूरकर शांति प्रदान करते हैं। 1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी में घंटे और शंख की ध्वनि के संबंध में जो शोध हुआ था, उसके निष्कर्षों के अनुसार प्रति सेकेंड 27 घनफुट वायु शक्ति के जोर से बजाया हुआ घंटा 1200 फुट दूरी तक के जीवाणुओं को मारने में सक्षम है। इसी तरह घंटे और शंख से निकली ध्वनियां कई तरह के संक्रामक कीटों और जीवाणुओं का नाश कर देती हैं।

आरती के बाद भगवान के चरणामृत का भी विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु इस चरणामृत को ईश्वर प्रसाद मानते हैं और उनकी सोच यह है कि इसे ग्रहण करने से उन्हें भगवान की कृपा मिल जाती है।