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ॐ के बिना सारी सृष्टि
सारा ब्रह्मांड अधूरा है

ॐ की ध्वनि स्वंय में शाश्वत है इसके बिना सारी सृष्टी संपूर्ण ब्रह्मांड अधूरा है। अगर मंत्रोच्चारण करते समय ॐ की ध्वनि उच्चारित न की जाए तो मंत्रोच्चारण अधूरा रहता है। ॐ में मानव जीवन का सार छिपा हुआ है। इसका नाद सभी से अलग विशेष है, जब आप ध्यान की चरम अवस्था में पहुंचते हैं तब आपको ॐ की ध्वनि स्वयं सुनाई देने लगती है। ॐ भगवान शिव का पर्याय है उनका प्रतीक है ॐ की ध्वनि शांत भी है और तीव्र भी है। अगर शांत मन से ॐ की ध्वनि को सुना जाए तो उसे सुनने पर आत्मिक सुकून की अनुभूति होती है।



यह ध्वनि संपूर्ण सृष्टी और ब्रह्मांड में व्याप्त है। इसलिए ॐ की ध्वनि को ईश्वर के समानार्थ बताया गया है। सम्सत वेदों में ॐ का व्याख्या की गई है। पुराणों में बताया गया है कि ॐ की ध्वनि और प्रकाश के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है। आज भी यह ध्वनि निरंतर रूप से जारी है। पूरे ब्रह्मांड में कंपन,ध्वनि और प्रकाश ही मौजूद है। जिस दिन सूर्य की ऊर्जा भी समाप्त हो जाएगी। उस दिन भी केवल ॐ की ध्वनि और प्रकाश ही उपस्थित होगा। 
ॐ का उच्चारण तीन ध्वनियों से मिलकर बना है इनका अर्थ वेदों में भी बताया गया है। ॐ अ,उ,म इन तीन शब्दों से मिलकर बना है यह तीनों अक्षर तीनों देवों से संबंधित हैं। अ आकार, उ,उंकार और म,मकार है। अ,ब्रह्मा का बोध कराने वाला है तो वहीं उं पालनकर्ता श्री हरि विष्णु का वाचक है। म,रुद्र यानि शिव का वाचक है। ॐ का उच्चारण करते समय अ की ध्वनि का त्याग हृदय में, उ की ध्वनि का त्याग कंठ में और म, की ध्वनि का त्याग तालुमध्य में किया जाता है।
ॐ का महत्व शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता, केवल इसकी अनुभूति की जा सकती है। ओ, उ और म, तीन अक्षरों से बने ॐ की अपार महिमा है। इसके उच्चारण से  नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र जागृत हो जाता है। यह तीनों देवों, ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ तीनों लोकों का भी प्रतीक है। शास्त्रों में ॐ की ध्वनि के शतम् अर्थात् सौ से भी अधिक अर्थ बताए गए हैं।
ॐ का उच्चारण मोक्ष की ओर ले जा सकता है। यह एकाक्षर मंत्र है, ॐ ही महामंत्र है, यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण, मोक्ष सभी का प्रतीक है। कैवल्य ज्ञान अर्थात् ब्रह्मज्ञान या आत्म ज्ञान की चरम अवस्था में पहुंचना। यही चरम अवस्था योग की होती है। जब साधक ध्यान की अवस्था में शून्य की ओर चला जाता है,उस चरम सीमा पर पहुंचने पर व्यक्ति को ॐ की ध्वनि स्वयं ही सुनाई देने लगती है।
ॐ से ही समस्त सृष्टि की उत्पत्ति है तो ॐ के नाद में सृष्टि के अंत की क्षमता भी है, इसके नाद अर्थात् ध्वनि में प्रलय को आमंत्रित करने की भी क्षमता है। यह समस्त ब्रह्मांड के विनाश की क्षमता रखता है, इसकी ध्वनि ब्रह्मांड की किसी भी अन्य वस्तु, प्राणी, ग्रह, आदि से प्रभावशाली है। यह ध्वनि सूक्ष्म से ज्यादा सूक्ष्म हो सकती है तो वहीं यह विकराल से भी ज्यादा विकराल हो सकती है।