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अहम् ब्रह्मास्मि।।

यह छोटा सा वाक्य ऐसा है जिसमें अच्छे-अच्छे ऋषि मुनि भी भ्रमित हो गए हैं। अहम् ब्रह्मास्मि में अहम् का अर्थ होता है मै और ब्रह्मास्मि का मतलब होता है ब्रह्मा। अर्थात मै ही ब्रह्म हूं। यह छोटा सा वाक्य ऐसा है जिसमें अहंकार प्रत्यक्ष दिख रहा है। किन्तु क्या कभी सोचा यह वाक्य वेदों में क्यो लिखा गया है और किस कारण से? जी हां वेदों में ही प्रथम बार यह वाक्य का प्रत्यक्षीकरण हुआ था।





वेद भगवान विष्णु ने अपनी दिव्यता को एक ज्ञान के छोटे से बिंदु में समेट कर ब्रह्मा को दिया और आदेश दिया था कि वह संसार के हित के लिए उसे प्रजा में विस्तृत किया जाए। तब ब्रह्मा ने अपनी शक्तियों से उस ज्ञान के छोटे से बिंदु से पुस्तक का स्वरूप दिया और उत्पन्न किया था ताकि संसार का भला हो और मनुष्य अपनी योनि में प्रगति कर पाए। तो आज हम इसी विषय पर बात करेंगे। यहां पर दिए गए सारे विचार मेरे स्वयं के है किसी भी व्यक्ति से कोई भी संबंध नहीं रखता है और अगर होता भी है तो वह केवल एक संयोग ही होगा।
अहम् ब्रह्मास्मि यह वाक्य का अर्थ होता है मै ब्रह्म हूं। किन्तु क्या यह सत्य है? तो उसका उत्तर है जी हां सत्य है । कैसे? तो चलिए आज का सफर प्रारंभ करते है। जब सृष्टि का आरंभ हुआ था तब परमात्मा ने यह सारा जगत बनाया किन्तु जीव नहीं थे। जब जीव बनाया तो उनमें हलचल नहीं थी। तभी भगवान शिव शंकर ने मार्गदर्शन किया कि उनमें जब तक आत्मा का संचय नहीं होगा तब तक जीव का अस्तित्व संभव नहीं है तो भगवान विष्णु ने ब्रह्मा और महादेव की सहायता से आत्मा को भगवान ने कई हिस्से किए और उन्हीं अंशो को जीव के भीतर प्रस्थापित किया गया तब जीव में हलचल शुरू हुई। ऐसे ही मानव में भी परमात्मा का अंश आत्मा के स्वरूप आया तब मनुष्य इतना काबिल बना। यह दृष्टिकोण से देखा जाए तो हम सभी परमात्मा के है अंश है। हम तो क्या पुरा सृजन परमात्मा का अंश है। जो भी आपको पूरे विश्व में दृश्यमान हो रहा है सभी परमात्मा का अंश है।
तो अहम ब्रह्माषमी कहना बिल्कुल ग़लत नहीं है। हम सभी ब्रह्म है। किन्तु एक बात का पता होना अनिवार्य है। यह वाक्य बोलने से पहले इतना पता होना आवश्यक है कि हम है कौन? हमारा लक्ष्य क्या है! एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूं। हिरण्यकश्यप अहंकारी था। भगवान विष्णु से शत्रुता के चलते अहंकार में मद हो कर खुद को भगवान समझने लगा। वह भी स्वयं को अहम् ब्रह्मास्मि बोलता था। अब आप कहोगे जब हम सब परमात्मा का अंश है तो बोलने में क्या गलत है? बोलने में कतई गलत नहीं है तब तक जब तक अहंकार का प्रत्यक्षीकरण ना दिखाई दे। अगर अहंकार का छोटा सा बीज भी है तो वह अहंकार का प्रतीक बन जाएगा और वह पतन का कारण बनेगा। यही तो हुए था हिरण्यकश्यप के साथ। प्रहलाद के रूप में परमात्मा ने उसका अहंकार को तोड़ा और सर्वनाश किया था। अगर यही शब्द बिना अहंकार के होता तो यह सत्य वचन होता किन्तु अहंकार से बोला गया यह वाक्य अहंकार का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में भी अहम् ब्रह्मास्मि का प्रयोग किया था। किन्तु वह अहंकार का प्रतीक नहीं था। क्योंकि वह स्वयं को पूरा जानते थे इसलिए। वह स्वयं ही सभी जीवो में विद्यमान है इसलिए। कई बार गीता में भगवान ने ऐसे वाक्यों का प्रयोग किया है जिससे कुछ लोगों को खास कर के कांग्रेसी लोगो को लगेगा कि यह तो अहंकार है। भगवान कैसा है यह को स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बता रहे है? भगवान ने कहा है, धातुओं में मै स्वर्ण हूं, गायो में कामधेनु, हाथियों में ऐरावत हूं, वृक्षों में कल्पवृक्ष हूं, सूर्य मै ही, सूर्य की उष्मा मै हूं, सूरज की किरणे मै हूं, चंद्रमा की शीतलता मै हूं, पृथ्वी मै हूं, पृथ्वी से निकलने वाली हर एक चीज मै हूं। जो भी कुछ है वह सब मै हूं। आखिर भगवान ने ऐसा क्यों कहा? कई लोगो के मन में यह प्रश्न सता रहे होंगे कि यह अहंकार नहीं हुआ? तो इसका उत्तर है जी नहीं। उदाहरण से समझने का प्रयास करते है।
बिल गेट्स आज पूरे विश्व का धनपति है। वह जो कार्य कर सकता है वह और कोई दूसरा कर सकता है क्या? नहीं ना? उससे बड़ा धनवान आजतक कोई है नहीं तो अगर वह बोले कि यह मेंने किया है तो वह अहंकार नहीं होता। जब उससे बड़ा मनुष्य कोई है ही नहीं तो वह अहंकार कैसे हो सकता है? वह तो एक दूसरो को बताने के लिए शब्द का प्रयोग मात्र है। अन्यथा दूसरो को कैसे समझ में आयेगा क्या कहना चाहते है! भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में यही कारण से अर्जुन को बताया था। उनसे बड़े कोई थे नहीं वहां पर तो पूरे संसार में नहीं थे तो अगर अर्जुन को बताना चाहे तो कैसे बता पाते? शब्द का प्रयोग तो आवश्यक था तो भगवान ने शाब्दिक प्रयोग किया है यह कोई अहंकार नहीं था भगवान का। आज मुकेश अंबानी भारत में सबसे धनवान व्यक्ति है। अगर वह कुछ कार्य करता है तो उसे किसी को बताने के लिए यह मैंने किया है कैसे बताएगा? उसे बोलना ही पड़ेगा कि उन्होंने बनाया है। यह अहंकार नहीं किन्तु शाब्दिक प्रयोग है। जो दूसरो पर रोफ जमाने के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग करे की मेंने बनाया है तो वह अहंकार का प्रतीक होता है। किन्तु शाब्दिक प्रयोग अहंकार नहीं होता। यह एक अभिव्यक्ति होती है ठीक वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में किया था।
अगर आप ज्ञान को प्राप्त किए बिना अहम ब्रह्मशमी बोलते हो तो यह अहंकार का प्रतीक है। वह गलत है। किन्तु अगर आपने सत्य को जान लिया, ज्ञान को प्राप्त कर लिया तो वह शब्द अहंकार नहीं है। इसलिए अहम् ब्रह्मास्मि कहना अनुचित नहीं है तबतक की हम में अहंकार ना हो। अगर अहंकार है तो यह वाक्य बोलने के हम अधिकारी नहीं है। आज का यह लेख पसंद आया हो तो कृपया नीचे कमेंट में अपनी राय कायम करे। लाइक और शेयर करना ना भूले।