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कई कारणों से फूल सकती हैं आपकी सांसें, ये हैं इसके लक्षण कारण और बचाव के उपाय

अक्सर आपने लोगों से सांस फूलने की समस्या के बारे में कुछ न कुछ कहते सुना होगा। अगर इस समस्या का समय रहते समाधान नहीं किया गया, तो जान भी खतरे में पड़ सकती है। क्या कभी आपने सोचा है कि सांस फूलने के प्रमुख कारण क्या हैं और इस मर्ज का इलाज क्या है?




सांस का फूलना इस बात का सूचक है कि शरीर को ऑक्सीजन की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पा रही है और फेफड़ों पर अनावश्यक दबाव है। ऐसे में फेफड़े ऑक्सीजन को वातावरण से खींचकर सांस की भरपाई करने के प्रयास में शीघ्र ही सांस लेने की क्रिया की गति को बढ़ा देते हैं, जिसे हम लोग सरल भाषा में सांस फूलना कहते हैं। अगर समय रहते सांस फूलने पर कंट्रोल नहीं किया गया, तो इसके परिणाम जानलेवा तक हो सकते हैं। सांस फूलने की स्थिति को रोकने के दो उपाय हैं, पहला शरीर की ऑक्सीजन की मांग को पूरा करने के लिए बाहर से अतिरिक्त ऑक्सीजन दी जाए और दूसरा शरीर की ऑक्सीजन की आपूर्ति की मांग को कम किया जाए। दूसरे शब्दों में सांस फूलने के कारणों पर या तो नियंत्रण रखा जाए या फिर कारणों को समाप्त करने का प्रयास किया जाए।
बड़ा कारण है फेफड़ों का रोग
फेफड़े का इंफेक्शन, जैसे न्यूमोनिया और टी.बी.लोगों में सांस फूलने का एक बड़ा कारण है। सांस नली और उनकी शाखाओं की दीवारों में सूजन भी एक कारण है, जिसे मेडिकल की भाषा में अस्थमेटिक ब्रॉन्काइटिस कहते है। कभी कभी सांस नली पर किसी गिल्टी या छाती के अंदर स्थित ट्यूमर का दबाव भी सांस फूलने का कारण हो सकता है। अक्सर दुर्घटना में छाती में लगी चोट का सही इलाज न होने पर, छाती के अंदर खून या मवाद जमा हो जाता है और जो फेफड़े पर दबाव बनाता है। इससे अक्सर सांस फूलने के साथ साथ खांसी की भी शिकायत उत्पन्न हो जाती है। अक्सर एस्बेस्टस नामक पदार्थ के संपर्क में रहने वाले लोगों को फेफड़े की झिल्ली का ट्यूमर पैदा हो जाता है, जो फेफड़े को चारों ओर से दबाता है। इसे मेडिकल की भाषा में प्ल्यूरल मीजोथीलियोमा कहते हैं। ऐसे लोगों में सांस फूलने का यह बहुत बड़ा कारण है।
एनीमिया की समस्या
शरीर में खून की कमी यानी लाल रक्त कणों की कमी को एनीमिया कहते हैं। अगर ऑक्सीजन को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने वाले रक्त के लाल कण यानी हीमोग्लोबिन की कमी है, तो ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होगी। देश में अधिकांश लोग कुपोषण के शिकार हैं, जो सांस फूलने की शिकायत का एक बड़ा कारण है। सांसन फूलने की समस्या को खत्म करने के लिए कुपोषण को समाप्त करना भी जरूरी है।
मोटापा एक अभिशाप
मौजूदा दौर में अनेक लोगों में आरामतलबी बढ़ रही है। नियमित सुबह सैर और व्यायाम न करना, शराब व अत्यधिक वसायुक्त खाद्य पदार्र्थों का भरपूर सेवन ये दोनों ही बातें शरीर के मोटापे को तेज गति से बढ़ा रही हैं। इस अतिरिक्त भार का मतलब शरीर में अतिरिक्त तरल पदार्थ व पानी की मात्रा का बढऩा है। इतना अतिरिक्त वजन बढ़ेगा, तो सांस फूलेगी। अक्सर आपने मोटापे से ग्रस्त लोगों को यह कहते सुना होगा कि चंद सीढ़ियां चढ़ने में सांस फूलती है। मोटापे में जरूरी नहीं है कि दिल की बीमारी हो। समय रहते अगर मोटापे को नियंत्रित कर लिया जाए, तो सांस फूलने की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
किडनी की बीमारी
मोटापे के अलावा किडनी से संबंधित बीमारी के कारण भी सांस फूलने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। किडनी रोग से ग्रस्त मरीज जब तेज चलता है या सीढ़ी चढ़ता है, तब उसकी सांस फूलने लगती है।
दिल के रोग भी जिम्मेदार
अगर किसी शख्स के दिल की दीवार कमजोर है या फिर पिछले हार्ट अटैक के दौरान दिल की दीवार का कोई हिस्सा बिल्कुल कमजोर या समाप्त हो गया है, तो ऐसा कमजोर दिल, खून व पानी का साधारण लोड भी नहीं उठा पाता है और सांस फूलने का कारण बन जाता है। उस पर अगर मोटापा भी साथ है, तो स्थिति और भी कष्टकारी हो जाती है। दायीं तरफ के दिल का हिस्सा अशुद्ध रक्त का स्टोर हाउस है, जो धड़कन के साथ शरीर के अंगों से आए हुए अशुद्ध खून को फेफड़े की तरफ शुद्धीकरण के लिए भेजता है और फिर यह खून शुद्धीकरण के बाद दिल के बाएं हिस्से में एकत्र होता है और धड़कन के साथ शरीर के अंगों को प्रवाहित होता है। यह क्रिया बराबर चलती रहती है। अगर किसी वजह से दिल के अंदर स्थित कपाट यानी वाल्व प्रत्येक धड़कन के साथ ठीक से न पूरे बंद हों और न ही ठीक से खुलें, तो दिल व फेफड़े पर आपस में संतुलन बिगडऩे के कारण अनावश्यक दबाव पडऩे लगता है। इस कारण सांस फूलने लगती है। अगर किसी को पैदाइशी दिल की बीमारी है और दिल के अंदर शुद्ध व अशुद्ध खून का आपस में सम्मिश्रण होता रहता है, तो शरीर में नीलापन खासकर अंगुलियां व होंठ प्रभावित होते हैं और साथ ही साथ सांस फूलने की भी शिकायत रहती है।
जरूरी जांच
सांस फूलने के कारणों को समझने और इसके इलाज की दिशा को निर्धारित करने के लिए शरीर की जांच जरूरी है। इन जांचों में छाती का एक्स रे, छाती का एच.आर., सी.टी., पी.एफ.टी., दिल के लिए डी.एस.ई. (डोब्यूटामीन स्ट्रेस ईको) और खून की जांचें (जैसे विटामिन डी. की मात्रा) कराना जरूरी है। कभी-कभी सी.टी. कोरोनरी व पल्मोनरी एंजियोग्राफी की भी जरूरत पड़ सकती है।