आलू के स्वास्थ्य लाभ |
आलुओं को सभी सब्जियों में अग्रणी माना जाता है| यदि किसी भी पकवान में आलू न हो तो सब कुछ फीका-फीका ही प्रतीत होता है| आलू का प्रयोग बारहों महीने और तीसों दिन किया जाता है| सब्जी के रूप में, चाट-पकौड़ी के रूप में या फिर चिप्स और पापड़ के रूप में; सभी में आलू प्रयुक्त होता है| विश्व भर में इसका प्रयोग किया जाता है, किन्तु यह वायु को बढ़ाने वाला है| इससे मांस व चर्बी की वृद्धि होती है| |
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1. त्वचा सदी में ठंडी-सूखी हवाओं में हाथों की त्वचा पर झुर्रियां पड़ने पर कच्चे आलू को पीस कर हाथों पर मलें| इससे झुर्रियां ठीक हो जाएंगी| नींबू का रस भी समान लाभदायक है| कच्चे आलू का रस पीने से दाद, फुंसियां, गैस, स्नायुविक और मांसपेशियों के रोग दूर होते हैं| 2. रक्तपित्त रोग विटामिन-सी की कमी से होता है| इस रोग की प्रारंभिकावस्था में शरीर और मन की शक्ति क्षीण हो जाती है अर्थात रोगी का शरीर निर्बल, असमर्थ, मंद, कृश तथा पीला-सा दिखता है| थोड़े से परिश्रम में सांस चढ़ जाता है| मनुष्य में सक्रियता के स्थान पर निष्क्रियता आ जाती है| रोग के कुछ प्रकट रूप में होने पर टांगों की त्वचा पर रोम कृपों के आसपास आवरण के नीचे से रक्तस्त्राव होने लगता है| बालों के चारों ओर त्वचा के नीचे छोटे-छोटे लाल चकत्ते निकलते हैं| फिर धड़ की त्वचा पर भी रोम कूपां के आसपास ऐसे बड़े-बड़े चकत्ते निकलते हैं| त्वचा देखने में खुश्क, खुरदरी और शुष्क लगती है| दूसरे शब्दों में अतिकिरेटिनता हो जाता है| मसूढ़े पहले से ही सूजे हुए होते हैं और इनसे सरलता से रक्तस्त्राव हो जाता है| बाद में रोग बढ़ने पर टांगों की मांसपेशियों, विशेषत: प्रसारक पेशियों से रक्तस्त्राव होकर उनमें वेदनायुक्त तथा स्पर्शाक्षम ग्रंथियां भी बन जाती हैं| हृदय-मांस में भी स्त्राव होकर हृदय-शूल का रोग हो सकता है| नासिका आदि से खुला रक्तस्त्राव भी हो सकता है| अस्तिक्षय और पूय स्त्राव भी इस विटामिन की कमी से प्रतीत होता है| कच्चा आलू रक्त पित्त को दूर करता है| विटामिन-सी आलू में बहुत होता है| इसको मीठे दूध में भी मिलाकर पिला सकते हैं| आलू को छिलका सहित गरम राख में भूनकर खाना सबसे अधिक गुणकारी है या इसको छिलके सहित पानी में उबालें और गल जाने पर खाएं| पानी, जिसमें आलू उबाले गये हों, को न फ़ेंके, बल्कि इसी पानी में आलुओं का रस पका लें| इस पानी में मिनरल और विटामिन बहुत होते हैं| 3. बेरी-बेरी रोग बेरी-बेरी का अर्थ है – चल नहीं सकना| इस रोग से जंघागत नाड़ियों में क्षीणता का लक्षण विशेष रूप से होता है| आलू पीस कर, दबाकर, रस निकाल कर एक चम्मच की एक खुराक के हिसाब से चार बार नित्य पिलाएं| कच्चे आलू को चबाकर रस को निगलने से भी समान लाभ होता है| 4. उच्च रक्तचाप उच्च रक्तचाप के रोगी भी आलू खाएं तो रक्तचाप को सामान्य बनाने में लाभ करता है| पानी में नमक डालकर आलू उबालें| छिलका होने पर आलू में नमक कम पहुंचता है और आलू नमक युक्त भोजन बन जाता है| इस प्रकार यह उच्च रक्तचाप में लाभ करता है| आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है, जो उच्च रक्तचाप को कम करता है| 5. अम्लता आलू की प्रकृति क्षारीय है, जो अम्लता को कम करती है| अम्लता के रोगी भोजन में नियमित आलू खाकर अम्लता को दूर कर सकते हैं| 6. गोरापन आलू को पीसकर त्वचा पर मलें, रंग गोरा हो जायेगा| 7. सूजन कच्चे आलू सब्जी की तरह काट लें| जितना वजन आलुओं का ही, उससे डेढ़ गुना पानी में उसे उबालें| जब केवल एक गुना पानी रह जाये तो उस पानी से चोट से आई सूजन वालें अंगों को धोएं, सेंक करें, लाभ होगा| 8. नेत्र रोग आंखों में जाला एवं फूला : कच्चा आलू पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम काजल की तरह लगाने से 5-6 वर्ष पुराना जाला और चार वर्ष तक का फूला 3 मास में साफ़ हो जाता है| 9. दुर्बलता (बच्चों का पौष्टिक भोजन) आलू का रस दूध पीते बच्चों को पिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं| आलू के रस में मधु मिलाकर भी पिला सकते हैं| आलू का रस निकालने की विधि यह है की आलुओं को ताजे पानी में अच्छी तरह धोकर छिलके सहित कद्दूकस करके इस लुगदी को कपड़े में दबाकर रस निकाल लें| इस रस को एक घंटे के लिए ढंककर रख दें| जब सारा कचरा, गूदा नीचे जम जाए, तो ऊपर का निथरा रस अलग करके काम में लें| 10. गुर्दे के रोग गुर्दे या वृक्क के रोगी भोजन में आलू खायें| आलू में पोटेशियम की मात्रा बहुत पाई जाती है और सोडियम की मात्रा कम| पोटेशियम की अधिक मात्रा गुर्दे से अधिक नमक की मात्रा निकाल देती है, इससे गुर्दे के रोगी को लाभ होता है| 11. भूख आलू खाने से पेट भर जाता है और भूख में संतुष्टि अनुभव होती है| आलू में वसा (चर्बी) या चिकनाई नहीं पाई जाती है| यह शक्ति देने वाला है और जल्दी पचता है| इसलिए इसे अनाज के स्थान पर खा सकते हैं| 12. मोटापा आलू मोटापा नहीं बढ़ाता| आलू को तलकर तीखे मसाले, घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है| आलू को उबालकर, गर्म रेत या राख में भूनकर खाना लाभदायक और निरापद है| 13. गठिया भोभल में चार आलू सेंक लें और फिर उनका छिलका उतार कर नमक-मिर्च डालकर नित्य खाएं| इससे गठिया ठीक हो जाती है| 14. आमवात पजामे या पतलून के दोनों जेबों में लगातार एक छोटा-सा आलू रखें तो यह आमवात से रक्षा करता है| आलू खिलाने से भी बहुत लाभ होता है| 15. कटिवेदना कच्चे आलू की पुल्टिस कमर में लगायें| 16. घुटना घुटने के श्लेषकला-शोथ, सूजन व इस जोड़ में किसी प्रकार की बीमारी हो जाए तो कच्चे आलू को पीसकर लगाने से बहुत लाभ मिलता है| 17. विपर्स यह एक ऐसा संक्रामक चर्म रोग है, जिसमें सूजन युक्त छोटी-छोटी फुंसियां होती हैं| त्वचा लाल दिखाई देती है तथा साथ में ज्वर रहता है| पहली फुंसियां ठीक हो जाती हैं तथा साथ-ही साथ दूसरी जल्दी फैल जाती है| इस रोग पर आलू को पीसकर लगाने से लाभ होता है| 18. पथरी एक या दोनों गुर्दों में पथरी होने पर केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है| पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियां और रेत आसानी से निकल जाती हैं| आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है, जो पथरी को निकालता है तथा बनने से रोकता है| 19. नील पड़ना कभी-कभी चोट लगने पर नील पड़ जाता है| नील पड़ी जगह पर कच्चा आलू पीसकर लगाएं| 20. जलना जले हुए स्थान पर कच्चा आलू पीसकर लगाएं| तेज धूप, लू से त्वचा झुलस गई हो तो कच्चे आलू का रस झुलसी हुई त्वचा पर लगाने से सौन्दर्य से निखार आ जाता है| 21. हृद्दाह इसमें आलू का रस पिएं| यदि रस निकाला जाना कठिन हो तो कच्चे आलू को मुंह में चबाएं तथा रस पी जाएं और गूदे को थूक दें| इससे हृद्दाह में आराम मिलता है| हृद्दाह में रोगी को हृदय पर जलन प्रतीत होती है| इसका रस पीने से तुरन्त ठंडक प्रतीत होती है| 22. अम्लता जिन रोगियों के पांचकांगों में अम्लता (खट्टापन) की अधिकता है, खट्टी डकारें आती हैं और वायु अधिक बनती है| उनके लिए गर्म-गर्म राख या रेत में भुना हुआ आलू खाना लाभदायक है| भुना हुआ आलू गेहूं की रोटी से आधी देर में हजम हो जाता है और शरीर को गेहूं की रोटी से भी अधिक पौष्टिक पदार्थ पहुंचाता है| यह पुराना कब्ज और अंतड़ियों की सड़ांध दूर करता है| आलू में पोटेशियम साल्ट होता है, जो अम्लपित्त को रोकता है| 23. वातरक्त कच्चा आलू पीसकर वातरक्त में अंगूठे पर लगाने से दर्द कम होता है| दर्द वाले स्थान पर भी लेप करें| |