हिन्दी पंचांग कैलेंडर
बच्चों को भी हो सकती है हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या, ऐसे करें बचाव

शरीर में बहुत सी बीमारियां और समस्याएं हमारी लाइफस्टाइल और खान-पान के कारण होती हैं। शरीर अच्छी तरह काम करे इसके लिए शरीर में एक निश्चित कोलेस्ट्रॉल लेवल होना चाहिए। कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ने से शरीर में कई तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं जैसे आर्टरी ब्लॉकेज, स्टोक्स, हार्ट अटैक और दिल की अन्य बीमारियां। आमतौर पर माना जाता है कि कोलेस्ट्रॉल की समस्या बस बड़ी उम्र के लोगों को ही होती है। मगर आपको बता दें कि कोलेस्ट्रॉल की समस्या बच्चों को भी हो सकती है। ज्यादा कोलेस्ट्रॉल की वजह से शरीर के अंगों को रक्त पहुंचाने वाली धमनियां अवरुद्ध हो जाती हैं, जिससे रक्त का प्रवाह रुक जाता है।




बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल का कारण
बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल का मुख्य कारण अनुवांशिक है। कोलेस्ट्रॉल की समस्या मां-बाप से बच्चों में आ जाती है जिससे उन्हें छोटी उम्र में ही इस खतरनाक समस्या से जूझना पड़ता है। इसके अलावा कोलेस्ट्रॉल का अन्य कारण आजकल की जीवनशैली और खानपान है। खानपान की अनियमितता और जंक फूड्स, फास्ट फूड्स की वजह से बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। मोटापे के कारण कोलेस्ट्रॉल की समस्या भी बढ़ जाती है। इसलिए बच्चों को फास्ट फूड्स और जंक फूड्स से दूर रखें और उन्हें हेल्दी डाइट की आदत डालें।
बच्चों में कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के संकेत
किसी बच्चे के माता-पिता अगर हृदय रोग या हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्या से परेशान हैं तो बच्चों में इस बीमारी के होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए अगर किसी को ये समस्या है तो उसे अपने साथ-साथ बच्चों के शरीर की भी पूरी तरह जांच करवानी चाहिए। शरीर में कोलेस्ट्रॉल के कम या ज्यादा होने का पता खून की जांच द्वारा संभव है। इसके अलावा अगर परिवार में पहले से कोई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से परेशान है या किसी की हृदय रोग के कारण मृत्यु हुई है तो बच्चों की स्क्रीनिंग जरूरी है। 2 से 8 साल की उम्र के उन बच्चों की भी स्क्रीनिंग जरूरी है जिनका वजन बहुत ज्यादा है और बॉडी मास इंडेक्स 95 प्रतिशत से ज्यादा है। बच्चे की पहली स्क्रीनिंग 2 से 8 साल के बीच करवानी चाहिए। अगर स्क्रीनिंग में फास्टिंग लिपिड प्रोफाइल सामान्य है तब भी 3 से 5 साल बाद फिर से स्क्रीनिंग करवानी चाहिए।
क्या है कोलेस्ट्रॉल
दरअसल कोलेस्ट्रॉल वैक्स या मोम जैसा एक ऐसा पदार्थ है जो लिवर बनाता है। ये हमारे शरीर में कोशिकाओं और हार्मोन्स के निर्माण के लिए जरूरी होता है। इसके अलावा ये बाइल जूस बनाने में भी मदद करता है। कोलेस्ट्रॉल दो प्रकार के होते हैं- एलडीएल (लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) और एचडीएल (हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) कोलेस्ट्रॉल। एलडीएल को बैड कोलेस्ट्रॉल भी कहा जाता हैं। एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को लिवर से कोशिकाओं में ले जाता है। अगर इसकी मात्रा अधिक हो जाए तो यह कोशिकाओं में हानिकारक रूप से इकट्ठा हो जाता है और धमनियों को संकरा बना देता है। इसके कारण ब्लड का सर्कुलेशन धीरे हो जाता है या रुक जाता है जिससे शरीर के अंग प्रभावित होते हैं। रक्त में एलडीएल औसतन 70 प्रतिशत होता है। जोकि कोरोनरी हार्ट डिसीजेज और स्ट्रोक का सबसे बड़ा कारण बनता है। एचडीएल को अच्छा (गुड) कोलेस्ट्रॉल माना जाता है। गुड कोलेस्ट्रॉल कोरोनरी हार्ट डिसीज और स्ट्रोक को रोकता है। एचडीएल, कोलेस्ट्रॉल को कोशिकाओं से वापस लिवर में ले जाता है। लिवर में जाकर यह या तो टूट जाता है या फिर व्यर्थ पदार्थों के साथ शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है।
बच्चों में कोलेस्ट्रॉल से बचाव
कोलेस्ट्रॉल की समस्या से बचाव का एक ही तरीका है और वो है स्वास्थ्यवर्धक खानपान और अच्छी जीवनशैली। बच्चों को जंक फूड्स और फास्ट फूड्स से दूर रखना चाहिए और उन्हें वसा वाले आहार कम खाने देना चाहिए। बच्चों को ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट वाले आहार देने की सीमा तय करनी चाहिए। बच्चों को 30 प्रतिशत से ज्यादा ट्रांस फैट और 10 प्रतिशत से ज्यादा सैचुरेटेड फैट देने से उनमें हाई कोलेस्ट्रॉल की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा कोलेस्ट्रॉल की समस्या से बचाव के लिए नियमित व्यायाम जरूरी है। अगर बच्चा व्यायाम नहीं करता है तो उसे बाइकिंग, तैराकी, टहलने, दौड़ने आदि की आदत डलवाएं। इसके अलावा डांसिंग भी एक तरह का व्यायाम है और बच्चों को इसमें आनंद भी खूब आता है।