हिन्दी पंचांग कैलेंडर
10 अप्रैल 2021, चैत्र कृष्ण 14
शनिवार व्रत

शनिवार व्रत विधि -

शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं परंतु श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी है ।
इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए। शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।
शनि के व्रत में श्रद्धा–भक्ति तथा पूर्ण समर्पण भाव सहित स्वयं के कष्ट निवारण का आग्रह मन ही मन करना चाहिए। व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को चाहिए कि शनिवार को प्रात:काल स्नान कर सर्वप्रथम देव, ऋषि तथा पितृ तर्पण करें। पीपल अथवा शमी वृक्ष के नीचे भक्तिपूर्वक वेदी बनाकर उसे गौ के गोबर से लीप देना चाहिए।
इसके पश्चात् लौह निर्मित शनि की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करा कर, काले चावलों से निर्मित, चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें। (यदि घर पर नहीं कर सकते तो शनि मंदिर मे जाकर पुजा करें।) काले रंग के गंध, पुष्प, धूप, दीप, अष्टांग धूप तथा नैवैद्य आदि से भक्तिपूर्वक शनि देवता का पूजन करें। पूजन के बाद दिये गये नीचे लिखे दस नामों का उच्चारण करें-
  1. कोणस्थ
  2. पिंगला
  3. बभ्रु
  4. कृष्णे
  5. रौद्रातको
  6. यम
  7. सौरि
  8. शनैश्चर
  9. मंद
  10. पिप्पला

इसके पश्चात् "ऊँ शनिश्चरायै नम:" मंत्र का उच्चारण करते हुए पीपल अथवा शमी वृक्ष को कच्चे सूत के धागे से सात बार लपेट कर सात बार परिक्रमा करे। इसके पश्चात् वृक्ष का पूजन करे। यहा पूजा उपासना सूर्योदय से पूर्व करनी चाहिए। पूजन के पश्चात् शनिदेव के व्रत कथा का भक्तिपूर्वक श्रवण करना चाहिए। कथा वाचक को श्रद्धानुसार यथाशक्ति दान देना चाहिए। तिल, जौ, गुड़ , उड़द, लोहा, तेल तथा काले वस्त्र का दान करना चाहिए। शनि देवता की आरती, भजन, पूजन कर प्रसाद वितरित करना चाहिए।
शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए।
इसी प्रकार नियम पूर्वक तैंतीस शनिवार तक इस व्रत का श्रद्धापूर्वक पालन करे। यदि किसी कारण वस ३३ शनिवार नही कर सकते तो कम से कम ७ शनिवार व्रत करे। जो श्रद्धालुजन इस प्रकार नियम पुर्वक शनि देवता का व्रत करते है उनके समस्त कष्टों तथा दु:ख –दारिद्रय का नाश होकर उन्हें उत्तम सुख सौभाग्य तथा धन-धान्य सहित पुत्र-पौत्रादि होकर दीर्घायु प्राप्त होती है।
शनिदेव के व्रत विधान का भक्ति पूर्वक पालन करने से शनिदेव का कोप शांत होकर इनकी कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही राहु और केतु के दोष निवारण के लिए भी शनि देवता का व्रत विधान पूर्ण उपयोगी तथा उत्तम फलदायी है।
शनिवार व्रत का महत्व -
अग्नि पुराण के अनुसार शनि ग्रह से मुक्ति के लिए "मूल" नक्षत्र युक्त शनिवार से आरंभ करके शनिदेव की पूजा करनी चाहिए और व्रत करना चाहिए। लौकिक जीवन में शनि ग्रह के अनिष्टों, अरिष्टों की शांति के लिए, सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए शनि देवता का व्रत एक उत्तम साधन है। श्रद्धा भक्ति सहित विधिपूर्वक शनि महाराज का व्रत उत्तम फल्दायी है। इसके द्वारा सांसारिक दुख्हों का नाश होता है। शनि ग्रह जनित समस्त उपद्रवों, रोग, शोक का निवारण होता है। दीर्घायु, धन, वैभव, सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है। संसार के समस्त उद्योग धंधे, व्यवसाय, कल-कारखाने, मशीनरी सामान, धातु उद्योग, लोहा, समस्त लौह वस्तु, सारे तिल, काले वर्ण के सम्स्त पदार्थ, जीव-जंतू, जानवर, अकाल, अकाल मृत्यु, रोगभय, अर्थ हाँइ, चोर भय, राज्य भय, कारागार भय, पुलिस भय, गुर्दे के रोग, जुआ, सट्टा, लाटरी, दैवी विपत्ति, आकस्मिक हानि सहित समस्त क्रूर तथा अपराधिक कर्मों का स्वामी ग्रह शनिदेव को ही माना गया है। समस्त भय, कष्ट और लौकिक विपत्तियों का स्वामी ग्रह शनिदेव ही है। प्राय:सभी स्त्री-पुरुषों पर जीवन में तीन बार आयुभेद से जन्म कुंडली के ग्रह चक्रों के अनुसार शनि देवता का प्रभाव होता है।
शनि ग्रह के कष्टों के निवारण का एकमात्र उपाय शनि देवता की आराधना तथा व्रत ही है। जिसे सभी स्त्री-पुरुष तथा बच्चे भी कर सकते हैं। किसी भी शनिवार से शनि देवता का व्रत कर सकते हैं। विशेष रूप से श्रावण मास के किसी शनिवार से यह व्रत प्रारम्भ करना अति उत्तम तथा शीघ्र फलदायी होता है।
शनि पक्षरहित होकर अगर पाप कर्म की सजा देते हैं तो उत्तम कर्म करने वाले मनुष्य को हर प्रकार की सुख सुविधा एवं वैभव भी प्रदान करते हैं। शनि देव की जो भक्ति पूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता।
शनिवार व्रत पूजा की सामग्री -
काले रंग के गंध, पुष्प, धूप, दीप, अष्टांग धूप तथा नैवैद्य

ध्यान दें - शनिवार को लोहा या लोहे की कोई वस्तु, नमक, लकड़ी या लकड़ी का कोई भी सामान, सरसों का तेल, काले रंग के कपड़े या जूते, काले तिल या काली मिर्च, माचिस, कोई भी ज्वलनशील वस्तु, गैस, लाइटर इत्यादि ना खरीदें ।