दक्ष महादेव मन्दिर की पौराणिक कथा

दक्ष महादेव मन्दिर की पौराणिक कथा

हरिद्वार शहर से मात्र 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर को दक्षेश्वर महादेव मन्दिर भी कहा जाता है यह मंदिर कनखल में है , कनखल हरिद्वार की एक जानी-मानी मार्किट भी है और कनखल को भोलेनाथ की ससुराल भी कहते है | हरिद्वार स्थित दक्ष महादेव मन्दिर में आप सती कुंड , दक्ष घाट , शिवलिंग , गंगा चरण , माँ वैष्णो देवी मन्दिर, श्री राम दरबार , लक्ष्मी नारायण मन्दिर, श्री श्री दक्ष महाविद्या मंदिर के दर्शन कर सकते हो |

दक्षेश्वर महादेव मन्दिर की पौराणिक कथा
इस मन्दिर की जो पौराणिक कथा है वह भगवान शिव , माता सती और राजा दक्ष और शिव गणों से सम्बन्धित है | इस कथा को बताने का उद्देश्य यही है की आप सभी भलीभांति दक्ष महादेव मन्दिर के बारे में जान पाये इसके अलावा आप सबने सुना होगा की सावन में बहुत से लोग यहाँ दर्शन करने आते है कभी सोचा ऐसा क्यों ? देखिये सावन में तो लगभग हर शिव मंदिर में अत्यधिक भीड़ होती है लेकिन कुछ एक मंदिर बहुत ही खास है उनमे बहुत ही ज्यादा भीड़ होती है उसी में से एक है दक्ष महादेव मन्दिर तो अब पढ़िए कथा और जानिये की आखिर क्यों खास है यह पवित्र मंदिर –

कौन थे राजा दक्ष
दक्ष प्रजापति भगवान ब्रम्हा के मानस पुत्र थे और माता सती के पिता होने का भी इन्हें श्रेय जाता है इस हिसाब से राजा दक्ष भगवान शिव के ससुर हुये अच्छा दक्ष प्रजापति की शादी प्रसूति से हुई थी जो मनु की कन्या थी |

इस मन्दिर के पीछे की कहानी
राजा दक्ष का राज्य कनखल हरिद्वार में था उनकी पुत्री माता सती ने भोलेनाथ को पाने के लिए कठोर तप किया था जिसके फलस्वरूप भोलेनाथ माता सती से विवाह के लिए मान गए थे और यही बात राजा दक्ष को अच्छी नहीं लगी थी , पौराणिक किद्वंती के अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने कनखल में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमे सभी देवी-देवता , ऋषि-मुनि को निमंत्रण दिया और अपने दामाद भगवान शिव को नहीं बुलाया | खैर भोले बाबा तो ठहरे भोले उन्हें इस बात से कोई भी फरक नहीं पड़ा लेकिन माता सती को यह बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा और उन्होंने शिवजी से कनखल जाने की अनुमति मांगी और वो आ गई कनखल , मामला अब तक फिर भी ठीक था लेकिन इस यज्ञ अनुष्ठान में माता सती के पिता दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव के लिए कुछ आपत्तिजनक शब्द कहे, अब माता सती अत्यधिक कुपित हुई लेकिन अपने पिता से क्या कहती हो इसीलिए उसी यज्ञ की अग्नि में जलकर अपने प्राण त्याग दिये |
अब मामला ज्यादा गम्भीर हो गया जगत के स्वामी , विनाश के सबसे बड़े देवता की पत्नी के प्राण चले गए वो भी दक्ष प्रजापति की वजह से यह समाचार सुनकर शिवजी का क्रोध बढ़ गया और उन्होंने शिव गणों के साथ वीरभद्र और भद्रकाली को कनखल भेजा और , शिव अंश वीरभद्र ने क्रोधवश दक्ष प्रजापति का सर काटकर उसी यज्ञ की अग्नि में जला दिया | भगवान विष्णु एवं अन्य देवताओ के अनुरोध पर शिवजी वहां पप्रकट हुए और दक्ष प्रजापति को जीवन दिया और उनके सर की जगह बकरे का सर लगा दिया जिससे की वो यज्ञ पूरा हो सके , अब राजा दक्ष अपने किये पर शर्मिन्दा थे और भोलेनाथ से क्षमा याचना करने लगे तब भगवान शिव ने हर साल सावन के महीने में कनखल में निवास करने का वचन दिया | तब से यह मान्यता है की हर साल सावन के महीने में भोलेनाथ कनखल अपनी ससुराल में ही निवास करते है , अच्छा जहाँ पर यज्ञ कुंड था उसी स्थान पर दक्ष महादेव मन्दिर बनाया गया है | और सावन के महीने में तो यहाँ अत्यंत भीड़ भी हो जाती है |

कनखल के दक्षेश्वर मन्दिर का निर्माण किसने करवाया
मिली जानकारी के अनुसार दक्ष प्रजापति मन्दिर का निर्माण सन 1810 में रानी धनकौर जी ने करवाया था और उसके बाद सन 1962 में इसी मन्दिर का पुननिर्माण कराया गया अब आप सब सोच रहे होंगे की फिर इस मन्दिर को प्राचीन क्यों कहा जाता है तो बता दूँ मन्दिर बनवाने के तो सन हमें पता है लेकिन इस मंदिर में जो सती कुंड है वो अति प्राचीन है तभी इसे प्राचीन मंदिर कहा जाता है |