पूजा में पंचोपचार पूजन विधि

पूजा में पंचोपचार पूजन विधि

पूजा में पांच तरीको से अपने आराध्य देवी देवता का पूजन करना पंचोपचार पूजन कहलाता है | इस तरह के पूजन में आप भगवान की मूर्ति या फोटो को स्नान करके उनका श्रंगार करते है | फिर उन्हें पुष्प चढ़ाये जाते है | फिर धुप अगरबत्ती से वातारण को सुगन्धित बनाया जाता है | फिर दीपक प्रज्वलित करके देवता की आरती की जाती है और उन्हें भोग अर्पित किया जाता है | यह पूरा क्रम पंचोपचार पूजा कहलाता है |

1.देवता को गंध (चंदन) लगाना तथा हलदी-कुमकुम चढाना
सर्वप्रथम, देवता को अनामिका से (कनिष्ठिका के समीप की उंगलीसे) चंदन लगाएं । इसके उपरांत दाएं हाथ के अंगूठे और अनामिका के बीच चुटकीभर पहले हलदी, फिर कुमकुम देवता के चरणों में अर्पित करें ।

2. देवता को पत्र-पुष्प (पल्लव) चढाना
देवता को कागद के (कागजके), प्लास्टिक के इत्यादि कृत्रिम तथा सजावटी पुष्प न चढाएं, अपितु नवीन (ताजे) और सात्विक पुष्प चढाएं । देवता को चढाए जानेवाले पत्र-पुष्प न सूंघें । देवता को पुष्प चढाने से पूर्व पत्र चढाएं । विशिष्ट देवता को उनका तत्त्व अधिक मात्रा में आकर्षित करनेवाले विशिष्ट पत्र-पुष्प चढाएं, उदा. शिवजी को बिल्वपत्र तथा श ्री गणेशजी को दूर्वा और लाल पुष्प । पुष्प देवता के सिर पर न चढाएं; चरणों में अर्पित करें । डंठल देवता की ओर एवं पंखुडियां (पुष्पदल) अपनी ओर कर पुष्प अर्पित करें ।

3. देवता को धूप दिखाना (अथवा अगरबत्ती दिखाना)
देवता को धूप दिखाते समय उसे हाथ से न फैलाएं । धूप दिखाने के उपरांत विशिष्ट देवता का तत्त्व अधिक मात्रा में आकर्षित करने हेतु विशिष्ट सुगंध की अगरबत्तियों से उनकी आरती उतारें, उदा. शिवजी को हीना से तथा श्री लक्ष्मीदेवी की गुलाब से ।धूप दिखाते समय तथा अगरबत्ती घुमाते समय बाएं हाथ से घंटी बजाएं ।

4. देवता की दीप-आरती करना
पूजा में आरती का महत्व अत्यंत है | दीप-आरती तीन बार धीमी गति से उतारें । दीप-आरती उतारते समय बाएं हाथ से घंटी बजाएं ।
दीप जलाने के संदर्भ में ध्यान में रखने योग्य सूत्र
१. दीप प्रज्वलित करने हेतु एक दीप से दूसरा दीप न जलाएं ।
२. तेल के दीप से घी का दीप न जलाएं ।
३. पूजाघर मे प्रतिदिन तेल के दीप की नई बाती जलाएं ।

5. देवता को नैवेद्य निवेदित करना
नैवेद्य ( भोग ) के पदार्थ बनाते समय मिर्च, नमक और तेल का प्रयोग अल्प मात्रा में करें और घी जैसे सात्विक पदार्थों का प्रयोग अधिक करें । नैवेद्य के लिए सिद्ध (तैयार) की गई थाली में नमक न परोसें । देवता को नैवेद्य निवेदित करने से पहले अन्न ढककर रखें । नैवेद्य समर्पण में सर्वप्रथम इष्टदेवता से प्रार्थना कर देवता के समक्ष भूमि पर जल से चौकोर मंडल बनाएं तथा उस पर नैवेद्य की थाली रखें । नैवेद्य समर्पण में थाली के सर्व ओर घडी के कांटे की दिशा में एक ही बार जल का मंडल बनाएं । पुनः विपरीत दिशा में जल का मंडल न बनाएं । नैवेद्य निवेदित करते समय ऐसा भाव रखें कि हमारे द्वारा अर्पित नैवेद्य देवतातक पहुंच रहा है तथा देवता उसे ग्रहण कर रहे हैं ।