बद्रीनाथ धाम की पौराणिक कहानी और इतिहास

बद्रीनाथ धाम की पौराणिक कहानी और इतिहास

यहाँ मान्यता है की एक बार भगवान विष्णु तप करने के लिए पृथ्वी पर एक उचित स्थान देख रहे थे तो उनको अलकनंदा नदी के किनारे एक स्थल अच्छा लगा लेकिन यह स्थल भोलेनाथ का था , यही विष्णु जी बाल रूप में अवतरित हुए और जोर जोर से रोने लगे , भगवान विष्णु के बालरूप का इस तरह से रोना देख देवी पार्वती विचलित हो गई और फिर महादेव के संग देवी पार्वती भगवान विष्णु के बालरूप के सम्मुख प्रकट हो गये |

सम्मुख आकर उन्होंने उस बालक से रोने का कारण पूछा तो उसने ध्यान करने के लिए वह स्थान माँगा तो महादेव और माँ पार्वती ने वह स्थान उस बालक को दे दिया अब भगवान विष्णु तप में लीन हो गये, तप के दौरान एक बार वहां अत्यधिक हिमपात हुआ भगवान श्रीविष्णु पूरी तरह से सफ़ेद बर्फ से ढक गए तब देवी लक्ष्मी बहुत परेशां हुई |

और देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु जी के पास आकर एक बेर ( बद्री ) के पेड़ में बदल गई और सारी बर्फ़बारी को अपने ऊपर सह लिया जिससे की विष्णु जी को तकलीफ न हो इस प्रकार कई वर्षो तक देवी लक्ष्मी ने धूप , वर्षा , हिम से तप करते हुए भगवान विष्णु की रक्षा की , अच्छा जब भगवान विष्णु का तप समाप्त हुआ तो उन्होंने देखा की देवी लक्ष्मी बर्फ से ढकी हुई है |

तब विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा की जितना तप मैंने किया है उतना ही आपने भी किया है तो आज से इस स्थान पर मेरे साथ आपकी भी पूजा होगी और आपने बद्री का रूप लेकर मेरा बचाव किया है इसीलिये आज से यहाँ मेरा नाम बद्रीनाथ होगा मतलब आप बद्री हम आपके नाथ हुआ बद्रीनाथ इसीलिए इस मन्दिर का नाम बद्रीनाथ पड़ा |

मान्यता यह भी है की जिस स्थल पर विष्णु जी ने तप किया था वह वही तृप्त कुण्ड है जहाँ आज भी गरम जल रहता है और श्रद्धालु यहाँ स्नान कर लाभ उठाते है , हमको ये भी जानकारी मिली कि इस मन्दिर को बद्रीनाथ नाम क्यों दिया गया |

नर और नारायण से सम्बन्धित पौराणिक कथा
एकबार एक दानव ने सूर्य देव की तपस्या की और वरदान लिया कि जब कोई हजारो वर्ष तप करेगा तभी वो मेरा एक कवच तोड़ पायेगा और ऐसे 1000 कवच उसने वरदान में मांगे और उस दिन से उस दानव का नाम सहस्त्रकवच पड़ गया | लोक कथा के अनुसार भगवान ब्रम्हा जी के ह्रदय से उतपन्न हुए थे महाराजा धरम और इन्ही महाराजा धरम के पुत्र थे नर और नारायण जो की विष्णु जी के अवतार थे , कहा जाता है सतयुग में बद्रीनाथ धाम के समीप महात्मा नर और नारायण ने कई हजार वर्ष तपस्या की थी वतर्मान में इस स्थल को नर और नारायण पर्वत कहते है , पौराणिक मतों के अनुसार History of Badrinath Temple in Hindi में नर नारायण की भी कथा महत्वपूर्ण है क्यूंकि बद्रीनाथ धाम में नर नारायण पर्वत आज भी है |

कहते है की नर और नारायण को कठोर तप से देवताओ के राजा इन्द्र का सिंघासन हिलने लगा था , अब इन्द्र देव को लगा कि यह दोनों देव लोक पाने के लिए यह तप कर रहे है तो उन्होंने अपने लोक की अप्सराओ को नर और नारायण का तप भंग करने के लिए भेजा लेकिन वो सब असफल रही , अच्छा हमने जितना भी रिसर्च किया सहस्त्रकवच का नाम लगभग सभी पौराणिक कथाओ में मिला तभी हमने अपनी History of Badrinath Temple in Hindi की पोस्ट में इसे सम्मिलित किया | उधर जब सहस्त्रकवच को नर नारायण के बारे में पता चला तो वह इन दोनों तपस्वियों का तप भंग करने तप स्थल आ पंहुचा अच्छा आपको बता दे की जहाँ नर नारायण तप कर रहे थे वह पृथ्वी का एक मात्र ऐसा स्थल है जहाँ एक दिन तप करके 1000 साल तप करने का पुण्य मिलता है इसलिये एक दिन नारायण सहस्त्रकवच से युद्ध करते और नर तप करते और उसका एक कवच तोड़ देते फिर अगले दिन नर सहस्त्रकवच से युद्ध करते तो नारायण तप करते थे इस तरह सहस्त्रकवच के 999 कवच टूट गए | अब सहस्त्रकवच सूर्य देव के पास चला गया और उसने अपना बचाव कर लिया , ये विभिन्न पौराणिक कथाये एक दूसरे से जुड़ी हुई है |

भगवान राम से जुड़ी बद्रीनाथ की कहानी
अब जब त्रेतायुग में श्री राम अवतरित हुये तो उन्होंने अपने परम भक्त हनुमान जी को बद्रीआश्रम आने को कहा था और हनुमान जी हनुमान चट्टी नाम की जगह पर तप किये थे |

भगवान श्री कृष्ण से जुडी बद्रीनाथ की कहानी
अब द्वापरयुग में सतयुग के नर और नारायण का फिर से अवतार हुआ श्री कृष्ण और अर्जुन के रूप में , और दानव सहस्त्रकवच जिसे सूर्य देव ने उस समय बचाया था इस बार वो कर्ण के रूप में जन्म लिया था और उसका वध अर्जुन ने किया , कहानी यह भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी हुई थी |

बद्रीनाथ धाम से जुड़े कुछ प्राचीन मत
बद्रीनाथ मन्दिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था लेकिन यह ऐसी जगह पर है कि कही हिमपात कही भूकम्प तो यह मन्दिर कई बार क्षतिग्रस्त हुआ , गढ़वाल के राजाओ ने बद्रीनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण 17वी सदी में किया लेकिन यहाँ फिर से भूकंप आया और मन्दिर का काफी हिस्सा टूट गया तब सन 1803 में जयपुर के महाराजा ने करवाया था , History of Badrinath Dham से जुडी यही कुछ पौराणिक कथाये थी |