माता शिकारी देवी का मंदिर जहाँ छत नहीं है

माता शिकारी देवी का मंदिर जहाँ छत नहीं है

भारत में अद्भुत मंदिरों की भरमार है जिनका आर्कटेक्चर भी लोगों का मन मोह लेता है। हिमाचल की पहाड़ियां और मंदिरों की पावन छटा को देखकर हर कोई मोहित हो जाता है।


लेकिन इन मंदिरों में से कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जिनके रहस्यों के बारे में जानने के वैज्ञानिक बड़े व्याकुल रहते हैं। कई इन्हें बेहतरीन सांइस और आर्कटेक्चर का नमूना समझते है वही दूसरी तरफ लोगों के लिए ये सच्ची आस्था का प्रतीक भी हैं। भारत के कई मंदिर ऐसे हैं जहां कुछ न कुछ अजीबो-गरीब घटानाएं होती रहती हैं जिसे लोग भगवान का चमत्कार मानते हैं तो वैज्ञानिक विज्ञान का कोई खेल।
उदाहरण के तौर पर भारत के कई मंदिरों में दिया तेल से नहीं पानी से जलता है। या फिर मंदिरों सदियों से गर्म पानी का निकलना इन सभी के पीछे जहां सच्ची आस्था है वही कोई न कोई वैज्ञानिक तर्क भी छिपा हुआ है। लेकिन भारत के कई मंदिर ऐसे भी है। जिनके आगे वैज्ञानिक तर्क भी फेल हो जाते है। भारत के उत्तर भारत का हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड का पहाड़ी इलाका देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है। इस पूरी जगह में देवताओं का वास है और देवी देवताओं के अद्भुत मंदिर हैं।
देवभूमि में एक मंदिर है जो हिमाचल में स्थित है शिकारी देवी के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर वैसे तो भारत के अन्य मंदिरों की तरह आलीशान या भव्य नहीं है लेकिन इस मंदिर की आस्था और आर्कटेकचर की खूबी आपको जरुरी प्रभावित करेगी। इस देवभूमि का मंदिर जिसकी खासियत यह है कि ये मंदिर देश के ऐसे राज्य में है जहां बहुत बर्फबारी होती है। जिसे देखने हजारों सैलानी आते हैं इसके बावजूद भी इस मंदिर के टोप पर आपको कभी बर्फ नहीं दिखाई देती। क्योंकि इस मंदिर की पंडियो पर कभी बर्फ नहीं टहरती है।

आप चाहे तो खुद यहां सर्दियों के मौसम में आकर शिकारी देवी के मंदिर को देख सकते हैं। देवभूमि के इस मंदिर से लोगों की अटूट आस्था जुड़ी हुई है और इस मंदिर में बर्फ न ठहरने के अलावा भी कई रहस्य हैं ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। लोगों की मंदिर में आस्था ही किसी भी मंदिर की शक्ति को बढ़ाती है
हिमाचल के मंडी में 2850 मीटर की ऊंचाई पर बना शिकारी देवी मंदिर आज भी लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। आज तक कोई भी शख्स इस मंदिर की छत नहीं लगवा पाया।
कहा जाता है कि मार्कण्डेय ऋषि ने यहां सालों तक तपस्या की थी। उन्हीं की तपस्या से खुश होकर मां दुर्गा शक्ति रूप में स्‍थापित हुई। बाद में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान मंदिर का निर्माण किया।
पांडवों ने यहां तपस्या की थी। मां दुर्गा तपस्या से प्रसन्‍न हुईं और पांडवों को कौरवों के खिलाफ युद्घ में जीत का आर्शीवाद दिया। इस दौरान यहां मंदिर का निर्माण तो किया गया मगर पूरा मंदिर नहीं बन पाया।

मां की पत्‍थर की मूर्ति स्थापित करने के बाद पांडव यहां से चले गए। यहां हर साल बर्फ तो खूब गिरती है मगर मां के स्‍थान पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती।
चूँकि ये पूरा क्षेत्र वन्य जीवों से भरा पड़ा था, इसीलिए शिकारी अक्सर यहां आने लगे। शिकारी भी माता से शिकार में सफलता की प्रार्थना करते थे और उन्हें कामयाबी भी मिलने लगी। इसी के बाद इस मंदिर का नाम शिकारी देवी के नाम से पड़ गया।
मगर सबसे हैरत वाली बात ये थी कि मंदिर पर छत नहीं लग पाई। कहा जाता है कि कई बार मंदिर पर छत लगवाने काम शुरू किया गया। लेकिन हर बार कोशिश नाकाम रही। माता की शक्ति के आगे कभी भी छत नहीं लग पाई।
आज भी हर साल यहां लाखों श्रद्घालु पहुंचते हैं। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता भी बेहद ही सुंदर है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिखती है।