योग फल - प्रीति योग

योग फल - प्रीति योग

योग, मूल रूप से, सूर्य और चंद्रमा के संयोजन का उल्लेख करते हैं, जब एक नक्षत्र में जन्म होता है। वैदिक ज्योतिष में प्रतिपादित सत्ताईस नक्षत्रों के आधार पर कुल 27 विभिन्न योग हैं। ज्योतिषीय संयोजन या निति योग किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व लक्षणों को समझने में मदद करते हैं। नित्य योग की गणना गणितीय रूप से चंद्रमा और सूर्य के अनुदैर्ध्य को जोड़कर की जाती है और योग को 13 डिग्री और 20 मिनट से विभाजित किया जाता है।

प्रीति योग :
प्रीति योग में जन्म लेने वाले लोगों में दयाभाव की प्रधानता होती है। एवं दीन दुखियों के प्रति इनका ह्रदय सामान्य से अधिक संवेदनशील होता है। इस योग में जन्म लेने वाले लोग अपने आसपास के वातावरण में अनुकूलता की अभिलाषा रखतें है ,और ऐसी स्तिथि प्राप्त होने पर सुख व् संतोष का अनुभव करते हैं। मनमोहक एवं सुन्दर प्रतीत होने वाले भौतिक सुखों के प्रति इनका आकर्षण जीवन पर्यन्त विद्यमान रहता हैं, एवं ये इनसे अपना मोह त्यागने में अपेक्षाकृत अधिक कष्ट का अनुभव करते हैं।
इस प्रकार प्रीति योग में जन्मे लोगों का भौतिक वस्तुओं एवं सुखों को अधिक मान्यता प्रदान करना, इनके स्वभाव का एक प्रबल गुण है। प्रीति योग में जन्मे लोगों का भौतिक सुखों के प्रति ये आकर्षण एक प्रकार से सुखों की तीव्र इच्छा के वशीभूत मतान्ध बना देता है, एवं भविष्य में निर्मित होने वाली स्तिथियों के प्रति अधिक न सोचते हुए, तात्कालिक सुखों को भोगने की इच्छा भी, प्रीति योग में जन्मे लोगों में दृष्टिगत होती है।
इस योग में जन्मे लोग जिज्ञासु प्रवृति होते हैं। धन की महत्वकांक्षा इस योग में जन्मे जातकों में बहुत तीव्र होती है। अन्य शब्दों में धन (भौतिक सुख) से इन्हें अपेक्षाकृत विशेष प्रीती होती है। इस प्रकार धन एवं सम्मान से जुड़े विषयों में स्वयं के स्वार्थ को सिद्ध करने का एक भौतिक गुण भी इनमे विद्दमान होता है।
प्रीति योग में जन्मे लोगों में विपरीत लिंग के प्रति एक विशेष प्रकार का आकर्षण होता है, जो कई बार इन्हें मानसिक रूप से अत्यंत कष्टकारी मानसिक परिस्तिथि में भी पहुंचा देता है।
प्रीति योग में जन्मे जातक जिस प्रकार भौतिक आकर्षण के वशीभूत हो, अपने जीवन के सामान्य निर्णय लेतें है, उसी प्रकार ये अपनी अभिलाषाओं के वशीभूत अनायास ही ऐसे लोगों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बना लेते हैं, जो इन्हें विपरीत या विनाशकारी परिस्तिथि में छोड़ चले जाते हैं। इस प्रकार अधिक से अधिक लोगों की चिंता एवं परेशानी को अपनी परेशानी मानकर उन समस्याओं एवं चिंताओं का अधिक से अधिक समय चिंतन इन्हें मानसिक रूप से बीमार बना सकता है, या सिर में दर्द इत्यादि परेशानियों का अनुभव भी इन्हें करना पड़ता है। ध्यान रहे प्रीती योग में जन्मे साधु स्वभाव लोग भी इस योग के प्रभाव को स्वीकार करते हैं।