किसकी भक्ति श्रेष्ठ भगवान् और भक्त की रोचक कथा?

किसकी भक्ति श्रेष्ठ भगवान् और भक्त की रोचक कथा?

दोस्तों एक बार महर्षि नारद को यह अहंकार हो गया था,कि वही भगवान श्री हरि विष्णु के सबसे बड़े भक्त हैं। भगवान विष्णु का उनसे बड़ा भक्त तीनों लोकों में कोई नहीं है। महर्षि नारद अपनी इसी अहंकार की मस्ती में एक दिन पृथ्वी पर पहुंचे। पर जब वह पृथ्वी लोक पर पहुंचे, तो उन्हें बड़ा ही आश्चर्य हुआ…

क्योंकि पृथ्वी लोक पर हर एक व्यक्ति भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के साथ राधा का ही नाम ले रहा था। महर्षि नारद पृथ्वी लोक पर राधा रानी की स्तुति भगवान श्रीकृष्ण के नाम के साथ सुनकर बड़े ही खींच गए। तथा वह सोचने लगे कि भगवान श्री विष्णु से सबसे ज्यादा प्रेम तो मैं करता हूं, भगवान विष्णु का तो सबसे बड़ा भक्त मैं हूं… दिन-रात उन्हीं के नाम का गुणगान करते रहता हूं। इसके बावजूद भी उनके नाम के साथ मेरा नाम जोड़ने के बजाय आखिर क्यों पृथ्वी लोक के इंसान राधा नाम को जोड़ रहे हैं।

अपने इस समस्या को लेकर महर्षि नारद मुनि भगवान श्रीकृष्ण के पास गए। परंतु जब वह भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण तो अस्वस्थ हैं। तथा वह सर की पीड़ा से कराह रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण को इस हालत में देख कर महर्षि नारद का दिल द्रवित हो उठा। तथा उन्होंने भगवान् श्री कृष्ण से कहा… कि भगवन आप मुझे तुरंत बताइए, कि मैं किस प्रकार आपकी इस पीड़ा को दूर कर सकता हूं। यदि इसके लिए मुझे अपने प्राणों का त्याग भी करना पड़े, तो भी मैं इसमें जरा सी भी देरी नहीं करुंगा। तब भगवान श्रीकृष्ण महर्षि नारद जी से बोले… आपको मेरे इस पीड़ा के लिए अपने प्राण त्यागने की जरूरत नहीं है। मुझे तो यदि कोई मेरा भक्त अपने चरणों का धुला हुआ पानी (चरणामृत) पिला दे, तो मैं इस पीड़ा से मुक्त हो जाऊं। श्रीकृष्ण की बात सुनकर महर्षि नारद जी सोचने लगे कि स्वयं पूरे जगत के पालक, परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण को यदि मैं अपने पैरों का धुला हुआ जल (चरणामृत) पिने दूंगा, तो मुझे घोर नरक की प्राप्ति होगी। मैं इतने बड़े पापा को अपने ऊपर नहीं ले सकता। महर्षि नारद यह सब सोचकर भगवान श्री कृष्ण को अपनी असमर्थता जताते हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण महर्षि नारद जी से बोले, यदि आप यह कार्य नहीं कर सकते तो कृपया आप मेरी तीनों पत्नियों के पास जाकर यह सारी बात बताएं। संभवता मेरी पत्नियां मेरी इस पीड़ा को दूर करने में मेरी कुछ मदद कर दे।

श्री कृष्ण की आज्ञा से महर्षि नारद सबसे पहले श्री कृष्ण की सबसे प्रिय पत्नी रुकमणी के पास गए। और उन्हें जाकर सारा वृत्तांत बताया, परंतु रुकमणी ने भी अपना चरनाअमृत देने से मना कर दिया। इसके बाद नारदजी एक-एक करके कृष्ण के और भी दो पत्नियां सत्यभामा और जमाबंदी के पास गए। पर उन दोनों ने भी यह पाप करने से मना कर दिया। तब हारकर नारद मुनि भगवान श्रीकृष्ण के पास आ गए। और उन्हें पूरी बात बताई। तब भगवान श्रीकृष्ण ने महर्षि नारद से राधा के पास जाकर उनसे मदद मांगने को कहा। भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा पाकर नारद जी कृष्ण की प्रेयसी राधा के पास पहुंचे। और राधा के पास जाकर जैसे ही नारद जी ने उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का हाल सुनाया। राधा ने बगैर कुछ सोचे-समझे और बिना विचार किये एक जल से भरा पात्र लिया, तथा उसने अपने दोनों चरणों को धो दिया। राधा रानी ने अपने पैरों से धुले हुए उस जल के पात्र को महर्षि नारद को पकड़ाते हुए,राधा जी नारद से बोली कि मैं जानती हूं… कि मेरे इस कार्य के लिए मुझे रौरव नामक नरक, तथा उसी के समान अनेकों नरकों की प्राप्ति होगी। परंतु मैं अपने प्रियतम श्रीकृष्ण को होने वाली पीड़ा को बिल्कुल भी सहन नहीं कर सकती। उन्हें पीड़ा से मुक्त करने के लिए मैं अनेकों नरक की यातना सहने और झेलने को तैयार हूं। नारदजी तुरंत राधा के पैरों से धुले हुए जल के पात्र को लेकर भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे। पर जब नारद जी श्री कृष्णा के पास पहुंचे तो वे देखते है की, श्रीकृष्ण मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। तब नारद को ज्ञात हो गया कि क्यों पृथ्वी लोक के सभी वासी राधे-कृष्ण के प्रेम का स्तुति गान कर रहे हैं। महर्षि नारद ने भी अपनी वीणा पकड़ी,और नारद जी भी श्री राधे-कृष्ण नाम का गुणगान करने लगे।