जानिए हिन्दू परंपराओं के 12 वैज्ञानिक तर्क

जानिए हिन्दू परंपराओं के 12 वैज्ञानिक तर्क

हिन्दू धर्म में जन्म से लेकर मरणोपरांत तक कई तरह की परंपराओं का निर्वहन किया जाता है। यह परंपराएं अलंकार की तरह होती हैं, जो न केवल हिन्दू धर्म बल्कि भारत देश के प्रति दुनिया को आकर्षि‍त करती हैं। लेकिन यह परंपराएं निरर्थक या अनावश्यक नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी छिपे होते हैं। जानिए ऐसी ही कुछ परंपराओं और उनके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को - वास्तु के अनुसार माना जाता है कि व्यक्ति की वैवाहिक जिंदगी ग्रहों से प्रभावित होती है. अगर ग्रह ठीक ना हों तो शादी होने में समस्याएं आती हैं. और अगर शादी हो भी गई तो रिश्ते में समस्याएं आती रहती हैं.

माथे पर तिलक लगाना -
हिन्दू परंपरा अनुसार विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ में माथे पर तिलक लगाया जाता है। माथे पर तिलक लगाना बहुत शुभ माना जाता है और इसके लिए खास तौर से कुमकुम अथवा सिंदूर का उपयोग किया जाता है। सुहागन महिलाओं के लिए तो कुमकुम सुहाग और सौंदर्य के प्रतीक के रूप में जीवन का अभि‍न्न अंग होता है। लेकिन इसके पीछे सशक्त वैज्ञानिेक कारण भी है। वैज्ञानिक तर्क के अनुसार मानव शरीर में आंखों के मध्य से लेकर माथे तक एक नस होती है। जब भी माथे पर तिलक या कुमकुम लगाया जाता है, तो उस नस पर दबाव पड़ता है जिससे वह अधि‍क साक्रिय हो जाती है, और पूरे चेहरे की मांसपेशि‍यों तक रक्तसंचार बेहतर तरीके से होता है। इससे उर्जा का संचार होता है और सौंदर्य में भी वृद्धि‍ होती है। महिलाएं जो सिंदूर लगाती हैं, उसमें हल्दी, चूना एवं पारा होता है, जो ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करता है।

हाथ जोड़ना या नमस्ते करना -
हमारे यहां किसी से मिलते समय या अभि‍वादन करते समय हाथ जोड़कर प्रणाम किया जाता है। इसे नमस्कार या नमस्ते करना कहते हैं जो सम्मान का प्रतीक होता है। लेकिन अभि‍वादन का यह तरीका भी वैज्ञानिक तर्कसंगत है। हाथ जोड़कर अभि‍वादन करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क है कि जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो उनपर दबाव पड़ता है। इस तरह से यह दबाव एक्यूप्रेशर का काम करता है। एक्यूप्रेशर पद्धति के अनुसार यह दबाव आंखों, कानों और दिमाग के लिए प्रभावकारी होता है। इस तरह से अभि‍वादन कर हम व्यक्ति को लंबे समय तक याद रख सकते हैं।

चरण स्पर्श -
हिन्दू धर्म में ईश्वर से लेकर बड़े-बुजुर्गों के पैर छूकर आशर्वाद लेने की परंपरा है, जिसे चरण स्पर्श करना कहते हैं। हर हिन्दू परिवार में संस्कार के रूप में बड़ों के पैर छूना सिखाया जाता है। दरअसल पैर छूना या चरण स्पर्श करना केवल झुककर अपनी कमर दुखाना नहीं है, बल्कि इसका संबंध उर्जा से है। > वैज्ञानिक तर्क के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के शरीर में मस्तिष्क से लेकर पैरों तक लगातार उर्जा का संचार होता है। इसे कॉस्मिक उर्जा कहा जाता है। इस तरह से जब हम किसी व्यक्ति के पैर छूते हैं, तो हम उससे उर्जा ले रहे होते हैं। सामने वाले के पैरों से उर्जा का प्रवाह हाथों के जरिए हमारे शरीर में होता है।

व्रत रखना -
हिन्दू धर्म में व्रत रखने का महुत महत्व है। कई बार लोग, खास तौर से महिलाएं, निर्जला व्रत भी रखती हैं। सप्ताह में एक दिन या फिर तिथि‍ अनुसार बगैर अन्न और जल के पूरा दिन रहना सेहत के लिए फायदेमंद होता है। > वैज्ञानिक तर्क के अनुसार व्रत आयुर्वेद के हिसाब से शरीर और पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाए रखने के लिए लाभकारी होता है। इससे पाचन क्रिया बेहतर होती है और फलाहार करने से शरीर से हानिकारक और अवांछि‍त तत्व बाहर निकल जाते हैं। एक शोध के अनुसार व्रत करने से हृदय रोग, डाइबिटीज ओर कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है।

जमीन पर बैठकर भोजन -
भारतीय संस्कृति में जमीन पर बैठकर भोजन करना उत्तम माना जाता है। भले ही अब शहरों में यह चलन नहीं रहा हो, लेकिन गांवों और कस्बों में आज भी लोग जमीन पर बैठकर ही भोजन करते हैं। > इसके पीछे वैज्ञानिक आधार है। पालकी लगाकर बैठना योग के प्रमुख आसनों में से एक है। जब आप पालकी लगाकर बैठते हैं तो आप जो भी खाते हैं उसका पाचन बेहतर होता है। इसके अलावा आपका मन और मस्तिष्क दोनों ही शांत होते हैं।

भोजन में तीखा और मीठा -
भोजन को तौर-तरीकों अनुसार किया जाए, तो हमारे यहां भोजन की शुरूआत भले ही तीखे से हो, लेकिन भोजन के अंत में हमेशा मीठा व्यंजन खाया जाता है। इसके पीछे का वैज्ञानिक तर्क यह है कि - शुरुआत में तीखा भोजन करने से हमारा पाचन तंत्र ठीक तरीके से कार्य करना शुरू कर देता है। और अंत में मीठा व्यंजन खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इसके अलावा मीठा खाने के बाद आप भोजन से पूरी तरह से संतुष्ट हो जाते हैं और यह आपको प्रसन्नता प्रदान करता है।