इनके बारे में बुरा सोचने पर खुद का ही नुकसान होता है

इनके बारे में बुरा सोचने पर खुद का ही नुकसान होता है

श्रीमद्भागवत गीता हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। इसमें खुद भगवान कृष्ण ने ज्ञान और नीति के कई उपदेश दिए हैं। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने 6 ऐसे लोगों के बारे में बताया है, जिनके बारे में बुरा सोचने पर मनुष्य का ही नुकसान होता है। इन 6 लोगों का अपमान करने पर मनुष्य को खुद ही इसके दुष्परिणाम झेलना पड़ते हैं।

श्लोक-

यदा देवेषु वेदेषु गोषु विप्रेषु साधुषु।
धर्मो मयि च विद्वेषः स वा आशु विनश्यित।।

अर्थात-
जो व्यक्ति देवताओं, वेदों, गौ, ब्रह्माणों, साधुओं और धर्म के कामों के बारे में बुरा सोचता है, उसका जल्दी ही नाश हो जाता है।
1. देवताओं से दुश्मनी ही बनी थी रावण के विनाश का कारण
रावण सभी देवताओं को अपना शत्रु मानता था। वह एक-एक करके सभी देवताओं को पीड़ा देने लगा था। उसके इसी व्यवहार और घमण्ड ही उसके नाश का कारण बना था। रावण को उसके कामों की सजा देने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर भगवान विष्णु से श्रीराम के रूप में अवतार लेने की प्रार्थना की। बाद में श्रीराम ने रावण को उसके बुरे कामों का फल स्वरूप उसका वध कर दिया।
इसलिए कहा जाता है कि किसी को भी देवताओं के लिए मन में द्वेष की भावना नहीं आने देना चाहिए। चाहे किसी भी परिस्थिति का सामना क्यों न करना पड़ रहा हो, लेकिन हमेशा भगवान पर विश्वास रखना चाहिए।
2. वेदों का अपमान बना कई असुरों की मृत्यु का कारण
असुर हमेशा से ही देवताओं को अपना शत्रु मानते आए थें। वे हमेशा कुछ न कुछ करके देवताओं को परेशान करके के बारे में सोचते रहते थे। कई असुरों ने भगवान ब्रह्मा से वेदों को छिनने और उन्हें नष्ट करने की भी कोशिश की। जिन-जिन असुरों ने वेदों का सम्मान नहीं किया, उन्हें खुद भगवान मे दण्ड़ दिया है।
हर मनुष्य को अपने धर्म ग्रंथों और धर्मिक पुस्तकों का सम्मान करना चाहिए। रोज अपने दिन की शुरुआत कोई न कोई धार्मिक पुस्तक या ग्रंथ पढ़ कर ही करनी चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य के अपने हर काम में सफलता जरूर मिलती है।
3. गायों का अपमान करने की वजह से ही हुई थी बलासुर की मृत्यु
बलासुर एक असुर था। एक बार उसने देवताओं की सभी गायों का अपहरण कर लिया और उन्हें पीड़ा देने लगा। जब देवराज इन्द्र को इस बात का पता चला तो गायों को कष्ट पहुंचाने के दण्ड स्वरूप बलासुर का वध कर दिया और सभी गायों को उसके बंधन से मुक्त करवाया।
इसी प्रकार जो मनुष्य गायों का सम्मान नहीं करता, उन्हें पीड़ा देता है, वह भी राक्षस के समान ही माना जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार, जो मनुष्य रोज सुबह गाय को भोजन या चारा देता है और उनकी पूजा करता है, उसे धन-संपत्ति के साथ-साथ मान-सम्मान भी प्राप्त होता है।
4. ऋषि का अपमान करने पर मिला था दुर्योधन को श्राप
एक बार ऋषि मैत्रेय धृतराष्ट्र से मिलने के लिए उनके महल में आए थे। धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों ने ऋषि का बहुत स्वागत-सत्कार किया। महर्षि मैत्रेय दुर्योधन को अधर्म और जलन की भावना छोड़ कर धर्म का साथ देने को कहा। वे उसे पांडवों से दुश्मनी छोड़ कर मित्रता करने को कहने लगे। ऋषि की बात का अपमान करते हुए दुर्योधन उन पर हंसने लगा। इस अपमान से क्रोधित होकर ऋषि ने दुर्योधन को युद्ध में मारे जाने का श्राप दे दिया था।
हर किसी को ऋषियों और साधुओं का हमेशा सम्मान करना चाहिए। उनकी दी गई सलाह का पालन अपने जीवन में करना चाहिए। ऋषियों और साधुओं के मार्गदर्शन से मनुष्य की हर कठिनाई आसान हो जाती है और वह किसी भी मुसीबत का सामना बहुत ही आसानी से कर लेता है।
5. धर्म-कर्मों के बारे में बुरी सोच से मिली अश्वत्थामा को पीड़ा
अश्वत्थामा गुरु द्रोण का पुत्र था, लेकिन उसका मन हमेशा ही अधर्म के कामों में लगा रहता था। वह हमेशा से ही पांडवों को अपना शत्रु और दुर्योधन को अपना मित्र मानता था। इसी वजह से उसने दुर्योधन के साथ मिलकर जीवनभर अधर्म के साथ दिया और अधर्म ही करता रहा। धर्म की निंदा करने और अधर्म का साथ देने की वजह से ही भगवान कृष्ण ने उसे दर-दर भटकने और उसकी मुक्ति न होने का श्राप दिया था।
जो मनुष्य धर्म कामों को छोटा मान कर, गलत कामों में अपना मन लगाता है, वह हमेशा ही अपना नुकसान करता है।